नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की 32वें दिन की सुनवाई के
दौरान मुस्लिम पक्षकार ने विवादित स्थल को लेकर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एसएसआई) की रिपोर्ट पर अंगुली
उठायी और कहा कि विवादित ढांचे के नीचे एक ईदगाह हो सकती है।
मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई
चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि विवादित
ढांचे के नीचे एक ईदगाह हो सकती है।
वहां भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई में मिले दीवारों के अवशेष ईदगाह के हो सकते है।
सुश्री अरोड़ा ने कहा कि एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विवादित स्थल पर हर जगह अवशेष थे।
रिपोर्ट में मस्जिद के बारे में कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन राम चबूतरे के स्थान को राम चबूतरा बताया गया है।
उन्होंने कहा कि जिस बड़े निर्माण की बात हो रही है, वह 12वीं सदी में बनाया गया था।
उसका गुप्त काल से कोई मतलब नहीं है।
उन्होंने कहा, “वहां पर ईदगाह भी हो सकती है।
सभी जानते हैं कि ईदगाह का मुख पश्चिम की तरफ होता है, तो यह क्यों कहा जा रहा है कि वहां मंदिर ही था।”
उन्होंने कल भी अपनी दलीलों में एएसआई रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल खड़े किए थे।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने सुश्री अरोड़ा को इस पर टोकते हुए कहा, “मुस्लिम पक्ष का तो ये मानना रहा है कि मस्जिद
खाली जगह पर बनाई गई, लेकिन अब आप कह रही है कि उसके नीचे ईदगाह थी?
अगर ऐसा था तो ये आपकी याचिका में ये शामिल क्यों नही था।”
इस पर उन्होंने जवाब दिया कि 1961 में जब उन्होंने मुकदमा दायर किया तब ये मुद्दा ही नहीं था।
यह बात तो 1989 में सामने आई, जब हिन्दू पक्ष ने मुकदमा दायर कर दावा किया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
सुश्री अरोड़ा ने कहा, “मेरी जिरह रिपोर्ट पर आधारित है।
मेरे कहने का मतलब है कि जब यह कहा जा रहा है कि दीवारें मंदिर की हो सकती हैं तो ये भी अनुमान लगाया जा सकता
है कि ये दीवारें ईदगाह की है।”
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