लखनऊ , अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में दायर पुनरीक्षण याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में बुधवार को सुनवाई करेगी।
अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद और सैयद अखलाक अहमद की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका में इस मामले के सभी 32 अभियुक्तों को बरी करने के विशेष अदालत के 30 सितम्बर के फैसले को चुनौती दी गई है। यह रिवीजन याचिका आठ जनवरी को दाखिल की गई थी जो 13 जनवरी की वाद सूची में न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
याचिका में कहा गया है कि याची इस मामले में गवाह थे, साथ ही वे छह दिसम्बर 1992 को हुई विवादित ढांचा विध्वंस की घटना के पीड़ित भी हैं। उन्होंने विशेष अदालत के समक्ष प्रार्थना पत्र दाखिल कर खुद को सुने जाने की मांग भी की थी लेकिन विशेष अदालत ने उनके प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। याचियों का यह भी कहना है कि अभियुक्तों को बरी करने के फैसले के विरुद्ध सीबीआई ने आज तक कोई अपील दाखिल नहीं की है लिहाजा याचियों को वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दाखिल करनी पड़ी है।
याचिका में सभी 32 अभियुक्तों को दोषी करार दिये जाने का आग्रह किया गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल 30 सितम्बर को सीबीआई के विशेष जज एसके यादव ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, साक्षी महाराज, लल्लू सिंह, बृजभूषण शरण सिंह व महंत नृत्यगोपाल दास समेत सभी जीवित 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया था।
छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के आपराधिक मामले में 28 साल बाद 30 सितम्बर 2020 को जज सुरेंद्र कुमार यादव की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। जज ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि यह विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था बल्कि आकस्मिक घटना थी। विशेष अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था।
इस मामले में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। इसमें से 17 की मौत हो चुकी है। सीबीआई व अभियुक्तों के वकीलों ने करीब आठ सौ पन्ने की लिखित बहस दाखिल की थी। इससे पहले सीबीआई ने 351 गवाह व करीब 600 से अधिक दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए थे।
30 सितंबर, 2019 को सुरेंद्र कुमार यादव जिला जज, लखनऊ के पद से सेवानिवृत्त हो गए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फैसला सुनाने तक सेवा विस्तार दिया था। विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला 30 सितंबर 2020 को हुआ। यह फैसला सुनाने के बाद वह सेवानिवृत भी हो गए।