नयी दिल्ली, चीन ने कहा है कि कोविड-19 एक देश या एक शहर की लड़ाई नहीं है। यह हम सबकी लड़ाई है जिसे एकजुटता, परस्पर भरोसे एवं सहयोग के साथ लड़ना होगा। चीन की सरकार ने 82 देशों, डब्ल्यूएचओ और अफ्रीकी संघ के लिए सहायता घोषित की है।
भारत में चीन के दूतावास की प्रवक्ता जी रोंग ने संवाददाताओं से कहा कि चीन एवं भारत ने भी परस्पर संवाद कायम रखा है और भारत ने चीन को कठिन समय में सहयोग एवं समर्थन दिया। भारत की ओर से चीन को मेडिकल आपूर्ति करने के साथ विभिन्न तरीकों से मदद की गयी। चीन सरकार इसकी सराहना करती है और आभार मानती है।
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उन्होंने कहा,“ चीन के विशेषज्ञों ने हाल ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके इस महामारी पर नियंत्रण एवं उपचार के अनुभवों को साझा किया है। चीनी उपक्रमों ने भारत को दान देना भी शुरू कर दिया है। हम भारतीय पक्ष को अपनी क्षमता के अनुसार आवश्यकतानुसार और सहयोग देंगे। हमें विश्वास है कि भारत के लोग इस जंग को जल्द से जल्द जीत लेंगे। चीन भारत एवं अन्य देशों के साथ मिल कर और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग बढ़ाकर मानवता के कल्याण के लिए काम करता रहेगा।”
चीन ने कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ विषाणु को ‘चीनी विषाणु’ पुकारे जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है और कहा है कि ऐसे बयान तथ्यों और सच से ध्यान भटकाने के लिए दिये जा रहे हैं तथा इससे इस महामारी को नियंत्रित करने में कोई मदद नहीं मिलेगी।
प्रवक्ता जी रोंग ने संवाददाताओं से कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का स्पष्ट मत है कि किसी भी विषाणु को किसी क्षेत्र, देश या समुदाय विशेष से जोड़ कर निरुपित करना गलत है।
उन्होंने कहा, “ये तर्क तथ्यों की अनदेखी करते हैं और सही एवं गलत के बीच भ्रम पैदा करते हैं। ये तर्क गैरजिम्मेदाराना है और इस महामारी को नियंत्रित करने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में मदद नहीं करते हैं। हम ऐसे तर्कों का कड़ा विरोध करते हैं।”
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चीनी दूतावास की प्रवक्ता से सवाल पूछा गया था कि कुछ लोगों का मानना है कि यह विषाणु चीन से आया है और वे उसे चीनी विषाणु कहते हैं और चीन पर सूचनाओं को साझा करने में देर करने एवं पारदर्शिता के अभाव का आरोप लगाते हैं। इस प्रकार से वे चीन को इस पूरे संकट के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सुश्री जी रोंग ने कहा कि यह सही है कि कोरोना विषाणु सबसे पहले वुहान में प्रकाश में आया लेकिन उसके उदगम के बारे में वैज्ञानिक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। इस बारे में वैज्ञानिक एवं तकनीकी आकलन से ही सच्चाई का पता चल सकता है। अभी तक अमेरिका, यूरोप, चीन, जापान और डब्ल्यूएचओ के वैज्ञानिकों के अनुसंधान से कोरोना विषाणु के उद्भव के बारे में कोई प्रामाणिक बात सामने नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं है कि चीन इस विषाणु का स्रोत है। चीन के लोग भी इस विषाणु के शिकार हुए हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केन्द्र का आकलन है कि सितंबर 2019 से शुरू सीज़न से तीन करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं और 20 हजार से अधिक मौतें हुई हैं।
केन्द्र के निदेशक डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड ने स्वीकार किया है कि इनमें से कुछ लोग कोविड 19 से पीड़ित थे। उन्होंने कहा कि 2009 में इन्फ्लूएंज़ा उत्तरी अमेरिका से पैदा हुआ था लेकिन डब्ल्यूएचओ ने उसे उत्तरी अमेरिकी विषाणु नहीं कहा था बल्कि उसे एच1एन1 कहा गया था।
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उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस बात को लेकर स्पष्ट सहमति कायम है कि किसी भी विषाणु को किसी क्षेत्र, देश या समुदाय विशेष से जोड़ कर निरुपित नहीं करना चाहिए और यदि कोई ऐसा करता है तो उसे खारिज किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विषाणु का पता चलते ही चीन की सरकार ने खुले, पारदर्शी एवं जिम्मेदाराना ढंग से सर्वाधिक व्यापक एवं कठोरतम कदम उठाये और डब्ल्यूएचओ एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को निरंतर सब जानकारियां दीं और उपचार के अनुभव साझा किये।
सुश्री जी रोंग ने कहा कि चीन ने 12 जनवरी को ही डब्ल्यूएचओ को कोरोना विषाणु के जेनेटिक सीक्वेंस से अवगत करा दिया था। डब्ल्यूएचओ ने स्वीकार किया है कि चीन ने विश्व को संभलने के लिए पर्याप्त समय दिया जिसका सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया ने पूरा लाभ उठाया और आवश्यक नियंत्रण उपाय किये।
उन्होंने कहा कि चीन ने न तो विषाणु को पैदा किया और ना ही उसे प्रसारित किया। कोरोना को चीनी विषाणु कहने वाले चीन के लोगों के बलिदान और विश्व के लोगों के बचाव के लिए किये गये योगदान की अनदेखी कर रहे हैं।
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