आरक्षण का विरोध करने वाले क्यों चुप हैं कोलेजियम सिस्टम पर ? जज चुनतें हैं अपना उत्तराधिकारी ?

नई दिल्ली, इन दिनों आरक्षण को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। कोई दलित आरक्षण के विरोध में बयान दे रहा है तो कोई प्रमोशन मे आरक्षण को गलत बता रहा है।  उनका तर्क ये होता है कि  इसमें मेरिट को नजरअंदाज किया जाता है। लेकिन मेरिट को लेकर आरक्षण का विरोध करने वाले ये लोग न्यायपालिका मे धड़ल्ले से जारी कोलेजियम सिस्टम पर क्यों अपनी चुप्पी नही तो़ड़तें हैं ?

मायावती को मिली बड़ी राहत, हाई कोर्ट ने याचिका की खारिज

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने 2019 मे बीजेपी को हराने की अपील की, कहा- ‘लोकतंत्र खतरे में ’

न्यायपालिका की मौजूदा व्यवस्था की बात करें तो जारी कोलेजियम सिस्टम के कारण जज दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते बल्कि वह उत्तराधिकारी चुनते हैं। वह ऐसा क्यों करते हैं? क्या न्यायपालिका मे यही योग्य उम्मीदवार के चयन का तरीका है? उत्तराधिकारियों के चयन के लिए ऐसी व्यवस्था क्यों बनाई गई?

आरक्षण का विरोध करने वाले कहतें हैं कि आरक्षण में मेरिट को नजरअंदाज किया जाता है। जबकि एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, मछुआरे का बेटा वैज्ञानिक बन सकता है और फिर देश का राष्ट्रपति हो सकता है। लेकिन क्या इन सबके बेटे सुप्रीम कोर्ट के जज बन सकतें हैं? या आज तक कोई बना हो तो बतायें ? जजों की नियुक्ति वाली कोलेजियम व्यवस्था क्या सीधे-सीधे लोकतंत्र पर धब्बे की तरह नही है?

IAS से इस्तीफा देकर यह चर्चित युवा, अब करेगा इस क्षेत्र मे काम?

जीत का एक दिन पहले कर दिया था, पवित्रा यादव ने एेलान, अब 28 अगस्त को होगा मुकाबला

एेसा नही है कि न्यायपालिका की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को बदलने के प्रयास नही किये गये। केंद्र  सरकार ने जजों की नियुक्ति को लेकर कोलेजियम व्यवस्था को बदलने के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रस्ताव रखा था। न्यायिक नियुक्ति आयोग में कुल छह सदस्यों का प्राविधान है। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) इसके अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होंगे। केंद्रीय कानून मंत्री को इसका पदेन सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव है। दो प्रबुद्ध नागरिक इसके सदस्य होंगे। जिनका चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सहित तीन सदस्यों वाली समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में होगा।

चौंकाने वाली खबर, बिकेगा शोमैन राजकपूर का आर. के. स्टूडियो

क्या ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है ? क्यों है एसा करना जरूरी?

केंद्र सरकार ने न्यायिक नियुक्ति आयोग ऐक्ट को संसद और देश की 20 विधानसभाओं से पारित करने के बाद,  इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया। फिलहाल जजों की नियुक्ति एक बार फिर से कोलेजियम व्यवस्था के तहत ही की जा रही है।

आज स्थिति यह है कि दलित-पिछड़े वर्ग की ओर से लगातार यह आवाज उठती रही है कि न्यायपालिका में उनकी बात नहीं सुनी जाती, उन्हें न्याय नहीं मिलता। उनके आरोप की पुष्टि इस बात से हो जाती है कि भारतीय जेलों में बंद लगभग 90 प्रतिशत से ज्यादा कैदी दलित-पिछड़े आदिवासी वर्ग से आतें हैं। फांसी की सजा पाये ज्यादातर  कैदी भी इन्हीं वर्गों से होते हैं।

पक रही सामाजिक न्याय की खीर, उपेन्द्र कुशवाहा ने यादवों से दूध मांगकर, बीजेपी को दिया बड़ा झटका

समाजवादी पार्टी की ’सामाजिक न्याय एवं प्रजातंत्र बचाओं-देश बचाओं’ साइकिल यात्रा 27 अगस्त से शुरू

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या जुर्म के अधिकांश मामलों को दलित-पिछड़े आदिवासी वर्ग के लोगों द्वारा अंजाम दिया जाता है? क्या दलित-पिछड़े आदिवासी वर्ग के लोग आपराधिक मानसिकता के होतें हैं। बिल्कुल नहीं। लेकिन भारत मे कानून की नजर में वही अपराधी होता है जो अपने बचाव में पर्याप्त साक्ष्य और मजबूत दलीलें पेश नहीं कर पाता है और इसके भुक्तभोगी दलित-पिछड़े आदिवासी वर्ग के लोग सबसे ज्यादा होतें है क्योंकि न्यायपालिका में उनका प्रतिनिधित्व शून्य है। जबकि उनकी जनसंख्या 85 प्रतिशत से अधिक है।

मायावती का मास्टर-स्ट्रोक, कुछ यूं खिसका रहीं हैं बीजेपी की राजनैतिक जमीन

आखिर क्यों अमर सिंह को बार-बार याद आती है समाजवादी पार्टी ?

अब यदि भारतीय न्यायपालिका से कोलेजियम सिस्टम समाप्त कर, न्यायिक सेवा का गठन कर आरक्षम लागू कर दिया जाय तो न्यायिक व्यवस्था में दलित-पिछड़े आदिवासी वर्ग  को समुचित प्रतिनिधित्व मिल जाएगा। उस दशा मे दलित, पिछड़े आदिवासी वर्ग की ओर से बोलने वाला भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे कोई होगा और उनको न्याय मिल पाएगा। बड़े अफसोस की बात है कि आज देश मे आरक्षण का विरोध तो हो रहा है, लेकिन न्यायपालिका की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को बदलने की कोई बात नही कर रहा है।

आखिर छलक उठा मुलायम सिंह यादव के दिल का दर्द

मैं अपने जीवन के इस हिस्से…….को लेकर बहुत उत्साहित हूं-अभिनेत्री मौनी रॉय

Related Articles

Back to top button