अब आपके कंप्यूटर की हर बात होगी, इन 10 केंद्रीय एजेंसियों की निगरानी मे
December 22, 2018
नयी दिल्ली, केंद्र सरकार ने 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए सभी डेटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दे दिए हैं। विपक्षी पार्टियों की ओर से इस आदेश का विरोध करने पर सरकार ने शुक्रवार को सफाई पेश की और जोर देकर कहा कि ‘‘इन शक्तियों के अनधिकृत इस्तेमाल’’ पर रोक लगाने के मकसद से यह कदम उठाया गया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग द्वारा गुरुवार देर रात गृह सचिव राजीव गाबा के जरिए यह आदेश जारी किया गया।
मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि नया आदेश किसी सुरक्षा या कानून लागू कराने वाली एजेंसी को कोई नई शक्ति नहीं दे रहा।
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह ‘‘मौलिक अधिकारों पर हमला’’ है।
अधिकारियों ने बताया कि आदेश के मुताबिक, 10 केंद्रीय जांच और खुफिया एजेंसियों को अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी कंप्यूटर में रखी गई जानकारी देखने, उन पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार होगा।
इन 10 एजेंसियों में खुफिया ब्यूरो (आईबी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम में सक्रिय) और दिल्ली पुलिस शामिल हैं।
आदेश में कहा गया, ‘‘उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है।’’
सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है।
पहले के एक आदेश के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
बहरहाल, अपनी सफाई में गृह मंत्रालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2000 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं और टेलीग्राफ कानून में ‘‘समान सुरक्षा उपायों’’ के साथ ऐसे ही प्रावधान और प्रक्रियाएं पहले से मौजूद हैं।
मंत्रालय ने कहा कि कंप्यूटर की किसी सामग्री को देखने या उसकी निगरानी करने के ‘‘हर मामले’’ में सक्षम अधिकारी, जो केंद्रीय गृह सचिव हैं, की मंजूरी लेनी होगी।
बयान के मुताबिक, ‘‘मौजूदा अधिसूचना टेलीग्राफ कानून के तहत जारी अधिकृति जैसी ही है। जैसा कि टेलीग्राफ कानून के मामले में होता है, समूची प्रक्रिया एक ठोस समीक्षा तंत्र पर निर्भर होगी। हर एक मामले में गृह मंत्रालय या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी जरूरी होगी। गृह मंत्रालय ने किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या सुरक्षा एजेंसी को अपने अधिकार नहीं दिए हैं।’’
गृह मंत्रालय ने अपने पक्ष को विस्तार से बताने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2009 के नियम-4 का इस्तेमाल किया।
नयी दिल्ली, केंद्र सरकार ने 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए सभी डेटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दे दिए हैं। विपक्षी पार्टियों की ओर से इस आदेश का विरोध करने पर सरकार ने शुक्रवार को सफाई पेश की और जोर देकर कहा कि ‘‘इन शक्तियों के अनधिकृत इस्तेमाल’’ पर रोक लगाने के मकसद से यह कदम उठाया गया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग द्वारा गुरुवार देर रात गृह सचिव राजीव गाबा के जरिए यह आदेश जारी किया गया।
मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि नया आदेश किसी सुरक्षा या कानून लागू कराने वाली एजेंसी को कोई नई शक्ति नहीं दे रहा।
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह ‘‘मौलिक अधिकारों पर हमला’’ है।
अधिकारियों ने बताया कि आदेश के मुताबिक, 10 केंद्रीय जांच और खुफिया एजेंसियों को अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी कंप्यूटर में रखी गई जानकारी देखने, उन पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार होगा।
इन 10 एजेंसियों में खुफिया ब्यूरो (आईबी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम में सक्रिय) और दिल्ली पुलिस शामिल हैं।
आदेश में कहा गया, ‘‘उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है।’’
सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है।
पहले के एक आदेश के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
बहरहाल, अपनी सफाई में गृह मंत्रालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2000 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं और टेलीग्राफ कानून में ‘‘समान सुरक्षा उपायों’’ के साथ ऐसे ही प्रावधान और प्रक्रियाएं पहले से मौजूद हैं।
मंत्रालय ने कहा कि कंप्यूटर की किसी सामग्री को देखने या उसकी निगरानी करने के ‘‘हर मामले’’ में सक्षम अधिकारी, जो केंद्रीय गृह सचिव हैं, की मंजूरी लेनी होगी।
बयान के मुताबिक, ‘‘मौजूदा अधिसूचना टेलीग्राफ कानून के तहत जारी अधिकृति जैसी ही है। जैसा कि टेलीग्राफ कानून के मामले में होता है, समूची प्रक्रिया एक ठोस समीक्षा तंत्र पर निर्भर होगी। हर एक मामले में गृह मंत्रालय या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी जरूरी होगी। गृह मंत्रालय ने किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या सुरक्षा एजेंसी को अपने अधिकार नहीं दिए हैं।’’
गृह मंत्रालय ने अपने पक्ष को विस्तार से बताने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2009 के नियम-4 का इस्तेमाल किया।