Breaking News

प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 190वीं जयंती पर, देश ने किया याद

लखनऊ, देश की प्रथम महिला शिक्षिका क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की 190 वीं जयंती पर उन्हें याद किया गया। इस अवसर पर जहां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ वहीं सोशल मीडिया पर भी लोगों ने सावित्रीबाई फुले को नमन किया।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में सरावा गांव मेंं स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर रविवार को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी और लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने देश की प्रथम महिला शिक्षक क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की 190 वीं जयंती पर उन्हें याद किया।
इस अवसर पर कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर मोमबत्ती व अगरबत्ती जलाकर उन्हें अपनी भावपूर्णण श्रद्धांजलि अर्पित की। शहीद स्मारक पर अपने संबोधन में लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मनजीत कौर एडवोकेट ने कहा कि सावित्रीबाई फुले एक समाजसेविका थीं, जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना था। इसके अलावा वो भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री भी थी। सावित्रीबाई का जन्म तीन जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक गरीब परिवार में हुआ था। मात्र नौ साल की उम्र में उनकी शादी महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले से हो गई,उस समय ज्योतिबा फुले की उम्र महज 13 साल थी।
उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई ने विधवा की शादी, छुआछूत को मिटाना,महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं की शिक्षा जैसे कई कार्य किये। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल खोलना शुरू किया। पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए।
श्रीमती कोर ने कहा कि ज्‍योतिबा फुले ने महिलाओं की दशा सुधारने और समाज में उन्‍हें पहचान दिलाने के लिए 1854 में एक स्‍कूल खोला। यह देश का पहला ऐसा स्‍कूल था जिसे सिर्फ लड़कियां पढ़ती थी। उस दौरान लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया कि उस दौरान जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी तक फेंका करते थे। इस वजह से सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर साड़ी बदल लेती थीं।
उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई के पति क्रांतिकारी और समाजसेवी थे। फुले दंपति ने एक अस्पताल भी खोला था। इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई और 10 मार्च 1897 को प्लेग द्वारा ग्रसित मरीज़ों की सेवा करते वक्त सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया।
इस अवसर पर डॉक्टर धर्म सिंह,अनिरुद्ध सिंह ,मैनेजर पांडेय,मनजीत कौर सहित अनेक लोग मौजूद रहे।