देश के 46वें CJI बने जस्टिस रंजन गोगोई, प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली
October 3, 2018
नई दिल्ली, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने आज भारत के 46वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 63 वर्षीय न्यायमूर्ति गोगोई को राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में एक संक्षिप्त समारोह में उन्हें शपथ दिलायी।न्यायमूर्ति गोगोई ने ईश्वर को साक्षी मानकर अंग्रेजी में पद की शपथ ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 13 माह से थोड़ा अधिक होगा और वह 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त होंगे। वह न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की जगह देश के प्रधान न्यायाधीश बने हैं। 65 वर्ष की आयु पूरा करने पर मिश्रा मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए।
समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं एच. डी. देवगौड़ा सहित कई नेता मौजूद थे। लोकसभा में कांग्रेस के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय और डेरेक ओब्रायन जैसे विपक्ष के नेता भी कार्यक्रम में मौजूद थे। समारोह शुरू होने पर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को गणमान्य अतिथियों से हाथ मिलाते देखा गया। पूर्व प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर और जे. एस. खेहड़ भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
न्यायमूर्ति गोगोई न्यायपालिका में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले पूर्वोत्तर से पहले व्यक्ति हैं। उन्हें 13 सितंबर को भारत का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस पद के लिये सीजेआई के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को नामित करने की स्थापित परंपरा के अनुसार इस महीने के शुरू में प्रधान न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गोगोई के नाम की सिफारिश की थी।
न्यायमूर्ति गोगोई सहित कुछ वरिष्ठ न्यायमूर्तियों ने जनवरी में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर विभिन्न मुद्दों खासकर कुछ निश्चित पीठों को मामले भेजने के तरीकों की आलोचना की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति गोगोई की सीजेआई के तौर पर नियुक्ति की अटकलें बढ़ गयी थीं। न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर (अब सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ उन अन्य लोगों में शामिल थे जिन्होंने इस तरह से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया था। भारतीय न्यायतंत्र के इतिहास में संभवत: यह ऐसी पहली घटना थी।
कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने हाल में कहा था कि अगले प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि परंपरा के अनुसार प्रधान न्यायाधीश जब उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नामित करेंगे तब कार्यपालिका इस पर फैसला करेगा।