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किसानों ने मांगों को लेकर आंदोलन को दिया नया रुप

जयपुर, राजस्थान में किसानों के पचास संगठन एक मंच पर आकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संपूर्ण उपज की खरीद की गारंटी का कानून बनाने सहित अपनी मांंगों के लिए संघर्ष का समान कार्यक्रम बनाकर अपने आंदोलन को नया रुप दे दिया हैं।

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में ये पचास संगठन एक बैनर के नीचे आकर राष्ट्रपति को ज्ञापन, हस्ताक्षर अभियान एवं प्रदर्शनों सहित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से किसान आंदोलन को तेज करने के प्रयास करेंगे। श्री जाट ने बताया कि इसके लिए प्रदेश के 50 किसान संगठन एक मंच पर आये हैं और किसान संगठन राजस्थान के नाम से एक मंच तैयार किया गया है और इसकी ओर से संघर्ष का समान कार्यक्रम घोषित किया गया है।

उन्होंने बताया कि मंच के समान संघर्ष कार्यक्रम चलाने के निर्णय के अनुसार ये संगठन एक राष्ट्र-एक बाजार के नाम पर केन्द्र सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में भंडारण सीमा को समाप्त करने संबंधी संशोधन के साथ कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश, 2020 एवं मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) अध्यादेश, 2020 को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नाम ज्ञापन प्रेषित करेंगे। गत शुक्रवार से ज्ञापन प्रेषित करने का काम शुरु कर दिया गया जो एक सितम्बर तक चलेगा। उन्होंने बताया कि किसान महापंचायत राजस्थान के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के ज्ञापन प्रेषित करने एवं हस्ताक्षर अभियान चलाकर हस्ताक्षर युक्त कागजात को राष्ट्रपति तक पहुंचाने का आग्रह करेगी ताकि इसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन बनाया जा सके।

उन्होंने बताया कि ज्ञापन कार्यक्रम के बाद प्रदेश में ग्राम स्तर पर पन्द्रह सितंबर तक हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा। हस्ताक्षर युक्त कागजात को 20 सितंबर तक पटवारी, तहसीलदार, उप जिला कलेक्टर एवं जिला कलेक्टरों के माध्यम से राष्ट्रपति तक पहुंचाये जाएंगे। किसान संगठन अपने-अपने क्षेत्रों में किसानों की समस्याओं से संबंधित विषयों को भी ज्ञापन में सम्मिलित करेंगे। जिसमें असंतुलित बरसात के कारण मूंग, उड़द, कपास जैसी फसलों के खराबे के लिए तत्काल कार्यवाही कर किसानों को हुई क्षति की पूर्ति करना आदि शामिल है।

उन्होंने बताया कि 21 सितंबर को प्रदेश की 247 मंडियों को बंद का आह्वान किया गया है और उस दिन किसान भी मंडी में अपने-अपने ट्रैक्टरों पर काले झंडे लगाकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि किसानों ने दलहन एवं तिलहन की उपजों में न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर खरीद में 25 प्रतिशत सीमा का प्रतिबन्ध हटाने एवं राजस्थान में 25 प्रतिशत की सीमा में शेष 55,596.25 टन चना खरीद के सम्बन्ध में विधानसभा में संकल्प लाने के लिए सभी दो सौ विधायकों को पत्र भेजकर अनुरोध किया गया लेकिन गत विधानसभा सत्र में किसी भी विधायक ने इस पर चर्चा की पहल नहीं की। इसके बाद किसानों अपनी आवाज बुलंद करने का निर्णय लिया और इसके लिए प्रदेश के पचास किसान संगठन एक मंच आ चुके हैं और अपनी मांगों को लेकर धीर धीरे आंदोलन को तेज किया जायेगा।

श्री जाट ने बताया कि आंदोलन की समीक्षा एवं आगे के समान संघर्ष के कार्यक्रम की रचना मंच की ओर से गठित कोर कमेटी की बैठक में जायेगी तथा यह कमेटी अन्य किसान संगठनों से भी संपर्क कर एक मंच पर लाने का प्रयास करेगी। उन्होंने बताया कि किसानों की मांग है कि केन्द्र सरकार इन अध्यादेशों को वापस लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वर्ष भर ग्राम स्तर पर संपूर्ण उपज की खरीद की गारंटी के लिए कानून बनाये ताकि इसके बाद किसी भी कृषि उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर क्रय-विक्रय करना दंडनीय अपराध बन जाएगा। तब कोई भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित नहीं रह पाएगा।

उन्होंने बताया कि किसानों की सुनिश्चित आय एवं मूल्य का अधिकार विधेयक 2012 के प्रारूप के आधार पर एक निजी विधेयक को लोकसभा में आठ अगस्त 2014 को विचारार्थ स्वीकार किया गया था लेकिन छह साल बाद भी सरकार ने इसे पारित करने में सार्थक पहल नहीं की। इसके विपरीत सरकार बड़े पूंजीपतियों को कृषि उपजों के व्यापार का एकाधिकार सौंपने, किसानों को उनकी भूमि पर ही मजदूर बनाने संबंधी अध्यादेश लेकर आई, जिससे जहां देश के किसानों में रोष व्याप्त वहीं इससे किसानों एवं देश को नुकसान भी होगा।