लंदन, ब्रिटेन में आज होने वाले आम चुनाव इस बार इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इसमें प्रवासी भारतीय और पाकिस्तानी बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक ब्रिटेन की कुल जनसंख्या 6 करोड़ थी जिसमें 2.5 फीसदी भारतीय हैं। वहां की राजनीतिक पार्टियों ने भारतीयों को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार किए।
ब्रिटेन में चुनाव में बेरोजगारी, गरीबी, ब्रैक्जिट और टैक्स आदि बड़े मुद्दे हैं, लेकिन इन सब पर कश्मीर मुद्द भारी पड़ रहा है।
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ब्रिटेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर मैनचेस्टर और दक्षिण एशियाई लोगों की सबसे बड़ी आबादी वाला शहर ब्रैडफर्ड में कश्मीर का जिक्र ना हो तो बहस अधूरी रह जाती है। ये दोनों शहर लेबर पार्टी के गढ़ रहे हैं, लेकिन इस बार यहां दोनों पार्टियों में मुकाबला कांटे का है। यह आम चुनाव इसलिए भी दिलचस्प है कि इस बार प्रवासी भारतीय पहले से कहीं अधिक अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कश्मीर पर लेबर पार्टी के रवैये को भारत विरोधी माना जा रहा है। सितंबर में पार्टी ने लेबर पार्टी ने कश्मीर में कथित तौर पर मानवाधिकार की बहाली पर एक प्रस्ताव पास किया था। इसमें अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को कश्मीर जाकर वहां के हालात का जायजा लेने के लिए कहा गया था।
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लेबर पार्टी के इस प्रस्ताव को लेकर ब्रिटेन के भारतीय समुदाय में खासी नाराजगी देखी गई थी। इसके बाद लेबर पार्टी को सफाई देनी पड़ गई कि वह कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दे मानती है।
यहां लेबर पार्टी के अधिकतर सांसद पाकिस्तानी मूल के हैं। सांसदों का कहना है कि भारत ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया है, वह गैर कानूनी है। वहीं भारतीय मूल के लोगों को मानना है कि लेबर पार्टी का झुकाव मुसलमानों की तरफ ज्यादा है, जोकि भारतीयों के पक्ष में नहीं है।
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प्रवासी भारतीय को मनाने के लिए लेबर पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया कि अगर वह सत्ता में आती है, तो जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए औपचारिक रूप से माफी मांगेगी। इसके अलावा वादा किया कि जीतने पर स्कूलों के पाठ्यक्रम में ‘ब्रिटिश राज के अत्याचारों’ की पढ़ाई को भी शामिल किया जाएगा।
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कंजरवेटिव पार्टी के नेता और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने संसद में कहा था कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है, तो उसमें हमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जॉनसन के कश्मीर मुद्दे पर भारत का करने के बाद बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग उनके समर्थन में आ गए हैं। इसके बाद से विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी भारतीय कंजरवेटिव पार्टी का समर्थन करेंगे।