हिसार, हरियाणा में यहां स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय की ओर से फल छेदक(फ्रूट प्रिकिंग) मशीन पर पेटेंट प्रदान किया गया है।
विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. आर. के. झोरड़ ने आज यहां यह जानकारी देते हुये बताया कि इस मशीन का अविष्कार वर्ष 2009 में प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर मुकेश गर्ग और छात्र दिनेश मलिक की अगुवाई में किया गया जिस पर पेटेंट हासिल करने के लिये उसी वर्ष आवेदन किया गया था जो अब मिल गया है।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि फलों में आंवला बहुत ही पौष्टिक फल है जिसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसमें प्रोटीन और कई खनिज मिश्रण जैसे कैल्सियम, फास्फोरस और लौह अयस्क पाया जाता है। औषधीय दवाई बनाने में इसका बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल होता है तथा पौष्टिक होने के कारण सालभर इसकी मांग रहती है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि केवल अक्टूबर से जनवरी के बीच में ही फल तैयार होने के कारण इसकी सालभर उपलब्धता नहीं हो पाती थी।
इसके अलावा सीजन में बाजार में भरमार होने से अधिक मुनाफा भी नहीं मिल पाता। सालभर उपलब्धता, अधिक मुनाफा और इसकी पौष्टकता बरकरार रखना बेहद जरूरी था। इसके लिए आंवले का मुरब्बा ही सबसे बेहतर तरीका है। आंवले का मुरब्बा बनाने से पहले उसमें छेद करने की प्रक्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना छेद आंवले का मुरब्बा नहीं बनाया जा सकता।
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रवि गुप्ता के अनुसार पहले सारा काम हाथों से होता था, जिसमें प्रत्येक फल को सुइयों द्वारा छेदा जाता था जिसमें अधिक समय लगता था तथा बड़ी संख्या में हाथ लगने से शुद्धता भी नहीं होती थी। मजदूरों के हाथों में सूईयों से घाव भी हो जाते थे। अब मशीन की मदद से प्रतिघंटा 80 किलोग्राम तक फलों में छेद किया सकता है। इस मशीन को बीस साल की अवधि के लिए पेटेंट मिला है। कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने इस अविष्कार तथा पेटेंट से जुड़े वैज्ञानिकों और छात्रों को बधाई दी है।