नई दिल्ली, हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में मुख्यमंत्री पर लगे घूस लेने के आरोपों की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो से कराने के निर्देश दिये हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने महत्वपूर्ण निर्णय में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर लगे घूस लेने के आरोपों की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने के निर्देश दिये हैं।
अदालत ने कहा है कि अदालत इस मामले में अभियोग पंजीकृत कर जांच करे। अदालत ने निर्देश दिये हैं कि मामले से जुड़े सभी दस्तावेज देहरादून की सीबीआई को दो दिन के अंदर सौंपे जायें। साथ ही अदालत ने सीबीआई को कहा है कि याचिका के पैरा नंबर आठ में लगाये गये आरोपों के मामले में मामला दर्ज जांच करे। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता उमेश शर्मा को राहत देते हुए उनके खिलाफ नेहरू कालोनी थाने में दर्ज मामले को निरस्त कर दिया है। अदालत की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जो आरोप लगाये गये हैं वे प्रथम दृष्टया गलत लगते हैं। अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज दूसरी प्राथमिकी पर भी प्रश्नचिन्ह लगाये हैं।
दरअसल मामला मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के झारखंड राज्य के प्रदेश प्रभारी से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता उमेश शर्मा की ओर से पृथक-पृथक याचिका दायर कर कहा गया है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बतौर प्रदेश प्रभारी झारखंड भाजपा के नेता अमृतेश सिंह चौहान को झारखंड के गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर घूस ली थी और आरोप है कि अमृतेश सिंह चौहान की ओर से घूस की रकम मुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदारों के बैंक अकाउंट में जमा करायी गयी। मुख्यमंत्री की ओर से घूस की इस रकम का इस्तेमाल अपने चुनाव में किया गया है।
इसके बाद मुख्यमंत्री के करीबी की ओर से इसी साल जुलाई में देहरादून के नेहरू कालोनी थाने में उनके खिलाफ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 420, 467, 468, 469, 471 व 120बी के तहत मामला दर्ज कराया गया। शिकायतकर्ता हरेन्द्र सिंह रावत की ओर से कहा गया कि उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर आरोप लगाया गया है कि उनके तथा उनकी पत्नी सविता रावत के बैंक अकाउंट में अमृतेश सिंह चैहान की ओर से घूस की रकम जमा करायी गयी है। यह भी कहा गया है कि सविता रावत मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बहन है। शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया है कि उमेश शर्मा एक ब्लैक मेलर है और उसने जो आरोप लगाये हैं वह सब गलत हैं।
इसके बाद पुलिस की ओर से इस मामले की जांच की गयी और पुलिस ने वीडियो में लगाये गये आरोपों को गलत बताया है। हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से इन्हें सही बताया गया और कहा गया कि उनके खिलाफ दर्ज किये गये मामले गलत तथा दुर्भावना से प्रेरित हैं। याचिकाकर्ता की ओर से उनके खिलाफ दायर मामलों को निरस्त करने की मांग की गयी।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी की अदालत में हुई और अदालत ने सीबीआई को याचिका के पैरा आठ में उठाये गये बिन्दुओं पर मामला दर्ज करने के निर्देश दिये हैं।