नयी दिल्ली, उत्तर भारत में 65 फीसदी लोग घर की सुरक्षा से जुड़े खतरों से निपटने के लिए तैयार नहीं है। गोदरेज लॉक्स की हर घर सुरक्षित रिपोर्ट- इंडियाज सेफ्टी पैराडॉक्स- होम सेफ्टी बनाम डिजिटल सेफ्टी में यह खुलासा हुआ है। कंपनी के लिए रिसर्च नाउ ने यह सर्वेक्षण किया है। इसके मुताबिक लोग न केवल सुरक्षा संबंधी खतरों से निपटने के लिए तैयार नहीं है लेकिन 38 फीसदी लोग घर की सुरक्षा के लिए हाई टेक समाधानों को अपनाना चाहते हैं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जो लोग घरों में पारंपरिक ताले लगाते हैं उनमें से केवल 36 फीसदी ही हर साल ताला बदलते हैं। करीब 40 फीसदी लोग हर दो से तीन साल में अपने घर का ताला बदलते हैं जबकि 20 फीसदी लोगों ने कभी भी अपने घर का ताला नहीं बदला। इसके अनुसार उत्तर भारत में अधिकांश लोग घर की सुरक्षा से जुड़े डिजिटल उपायों के प्रति पूर्णतया आश्वस्त नहीं है और घर की सुरक्षा के लिए पारंपरिक तरीको का ही इस्तेमाल करते हैं।
उत्तर भारत काफी हद तक सुरक्षा के मामलों में पारंपरिक है वहीं करीब 82 फीसदी लोग घर की सुरक्षा के लिए मौजूद अत्याधुनिक तकनीकों जैसे डिजिटल लॉक के बारे में जानते हैं। करीब 62 फीसदी लोग पारंपरिक ताले इस्तेमाल करने में आरामदेह महसूस नहीं करते लेकिन फिर भी उन्होंने डिजिटल तालों को अपनाने की जरूरत महसूस नहीं की हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करीब दो से पांच महीने में कुल 25 फीसदी लोग अपने कम्प्यूटर का पासवर्ड बदलते हैं।
वहीं 21 फीसदी लोग एटीएम का पिन बदलते हैं। करीब 55 फीसदी लोग मोबाईल में फिंगर प्रिंट सेंसर का इस्तेमाल करते हैं। उत्तर भारत में सुरक्षा के लिए मौजूद विकल्पों जैसे फिंगर प्रिंट या पिन का तो लोग इस्तेमाल करते हैं लेकिन घर की सुरक्षा के लिए इन विकल्पों के उपलब्ध होने के बावजूद इनका प्रयोग नहीं करते। रिपोर्ट में कहा गया है कि 64 फीसदी भारतीयों के पास ऐसे उपकरण नहीं हैं जिनसे वे घर की सुरक्षा के खतरों से निपट सकें। करीब 61 फीसदी लोग उच्च गुणवत्ता वाली उच्च तकनीकी काे नहीं अपनाना चाहते हैं।