ये दो उपाय बदल रहे हैं, ‘ हुज़ूर-मज़ूर के बच्चों’ के स्कूल का फर्क
March 1, 2019
नयी दिल्ली, सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदलने लगी है। इसे बदलने मे दो उपायों ने बड़ी मदद की है।
एक अनुमान के अनुसार देश में उच्च प्राथमिक स्तर के निजी स्कूल की संख्या ढाई लाख के करीब है जिनमें पंजीकृत बच्चों की संख्या लगभग साढ़े छह करोड़ है। मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार क़ानून, 2010 में लागू होने के बावजूद सरकारी स्कूलों के हालात में ज़्यादा बदलाव नहीं आया।
राइट टू एजूकेशन फोरम द्वारा जुटाए गये आंकड़ों के अनुसार 2010 से 2018 के बीच राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, गुजरात आदि राज्यों में लगभग एक लाख स्कूल या तो बंद हो गये या फिर दूसरे स्कूलों में समायोजित कर दिए गए। स्कूलों के बंद होने का प्रमुख कारण छात्रों की संख्या में कमी होना बताया गया।
उत्तर प्रदेश भी इसका अपवाद नहीं रहा। प्रदेश में 2016 में लगभग 10 लाख विद्यार्थियों ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों को छोड़ दिया। उनमें से अधिकतर विद्यार्थियों ने गांव और शहरों में खुले अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया।
लेकिन सरकारी स्कूलों मे अंग्रेजी और नयी तकनीक की इस्तेमाल की शुरूआत से तस्वीर बदलने लगी है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रति अभिभावकों के रुझान को देखते हुए उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड ने अपने कुछ स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बदलने का निर्णय लिया। अंग्रेजी में पढ़ा सकने वाले शिक्षकों का तबादला चयनित स्कूलों में किया गया। इसके अच्छे नतीजे सामने आये और एक साल बाद सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन दो लाख तक बढ़ गया।
जनता की मांग पर लगभग 5000 सरकारी प्राथमिक स्कूल अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बन गए और अब अभिभावक उच्च प्राथमिक स्तर पर भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की मांग कर रहे हैं। राज्य में इस वर्ष से कक्षा छह और उससे ऊपर भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की शुरुआत हो सकती है। शिक्षकों ने अपने स्तर पर प्रयास कर के राज्य में लगभग 1200 प्राथमिक स्कूलों में ‘डिजिटल क्लास रूम’ बनाये हैं।
शिक्षकों ने जो नए प्रयोग और नवाचार किये हैं ,उनमे से कुछ को पुरस्कृत किया गया है, कुछ को लखनऊ में उच्च अधिकारीयों के बीच अपने काम को प्रस्तुत करने का मौका भी मिला। शिक्षकों का अपना व्हाट्सएप्प ग्रुप भी है और वे एक-दूसरे से विचार आैर कार्य का आदान-प्रदान करते रहते हैं।अंग्रेजी और तकनीक ने स्कूलों की दशा बदलने की अच्छी शुरुआत की है क्योंकि गांव में रह रहे अभिभावक भी चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी में पढ़ाई करें। बच्चे भी अंग्रेजी के दम पर दूसरे बच्चों से मुकाबला करना चाहते हैं।