नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने खुफिया अधिकारी के ‘बेनकाब होने या अयोग्यता और अक्षमता की स्थिति में उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने संबंधी नियम की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने शुक्रवार को पूर्व खुफिया अधिकारी ‘निशा प्रिया भाटिया’ की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी गुप्तचर अधिकारी के बेकनाब हो जाने या कार्य योग्य नहीं रहने की वजह से उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने संबंधी 35 साल पुराना नियम कानून-सम्मत है।
निशा ने वर्ष 1975 के रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) के नियम 135 (भर्ती, कैडर एवं सेवाएं) के तहत अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को चुनौती दी थी।
नियम 135 में कहा गया है कि गुप्तचर संगठन का कोई भी अधिकारी अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जा सकता है अगर खुफिया अधिकारी के रूप में उसकी गोपनीयता खत्म हो गयी है या सुरक्षा कारणों से वह नौकरी करने योग्य नहीं रह गया है अथवा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान वह जख्मी या दिव्यांग हो गया हो।
हालांकि खंडपीठ ने इस बात पर गौर किया कि रॉ की पूर्व अधिकारी की तरफ से दो वरिष्ठ अधिकारियों पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए आंतरिक समिति के गठन में देरी की गई। पीठ ने इसे लेकर में केंद्र को पूर्व महिला अधिकारी को एक लाख रुपये का हर्जाना देने का भी आदेश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुकूल कामकाजी माहौल किसी भी प्रतिष्ठित संस्थान का बुनियादी अंग होता है। यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून इसलिए है ताकि न केवल वास्तविक अपराधों को तय किया जा सके, बल्कि महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह एवं भेदभावपूर्ण मामलों पर रोक लगाई जा सके।
न्यायालय ने कहा, “सक्षम अधिकारी/पदाधिकारी द्वारा मामले की नियमित जांच से इन्कार करना न्याय से इन्कार और मौलिक अधिकार का हनन है।”