नयी दिल्ली, मछलियों के बाद पक्षियों की प्रजातियां सबसे तेजी से कम हो रही हैं तथा आवास एवं प्रवास स्थान पर मानवीय कब्जा और भोजन, शिकार आदि के लिए इन जीवों के इस्तेमाल से पक्षियों की कई प्रजातियों के, विशेषकर प्रवासी प्रजातियों के, निकट भविष्य में विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है।
प्रवासी वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की इकाई ‘सीएमएस’ की कार्यकारी सचिव एमि फ्रेंकल ने 10 अक्टूबर को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की पूर्व संध्या पर ईमेल के माध्यम से साक्षात्कार में ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि प्रवासी पक्षियों के संरक्षण की स्थिति दुनिया भर में पहले से खराब हो रही है। प्रवासी जीवों की स्थिति पर इस साल फरवरी में जारी पहली रिपोर्ट का हवाला देते हुये उन्होंने कहा “सीएमएस के पहले अनुबंध में शामिल प्रजातियों में से 80 प्रतिशत की आबादी घट रही है। इस अनुबंध में ऐसे जीव हैं जिनकी आबादी विलुप्त होने की कगार पर है। दूसरे अनुबंध में शामिल प्रजातियां जिनकी संरक्षण की स्थिति अनुकूल नहीं है उनमें से 50 प्रतिशत की आबादी कम हो रही है। मछलियों के बाद पक्षियों की प्रजातियां सबसे तेजी से घट रही हैं।”
उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की लाल सूची के संकेतकों से यह पता चलता है कि वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर पिछले 30 साल में प्रवासी पक्षियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ा है।
प्रवासी पक्षियों के लिए मुख्य संकट आवास पर इंसानी कब्जा और घरेलू इस्तेमाल तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए उन्हें बड़ी संख्या में मारे जाने का है। हम इस समय दुराहे पर खड़े हैं और यदि हम भविष्य में कोविड-19 जैसी संक्रामक महामारियों का जोखिम कम करना चाहते हैं तो हमें प्रकृति का हद से अधिक दोहन बंद कर स्वस्थ एवं मजबूत पारिस्थितिकी का संरक्षण और जहां जरूरत हो पुनर्निमाण करना होगा।
श्रीमती फ्रेंकल ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने भविष्य में नये संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे और वन्य जीवों के अधिक दोहन तथा उनके प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के बीच संबंध को उजागर किया है। सीएमएस प्रमुख ने कहा “इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वन्यजीवों का अत्यधिक दोहन और प्रकृति को नष्ट करना प्रवासी प्रजातियों की घटती संख्या के प्रमुख कारण हैं। प्रकृति के साथ हमारा अन्योन्याश्रय संबंध है। प्राकृतिक आवास को नुकसान के साथ मानवों तथा पालतु जानवरों और वन्य जीवों के बीच दूरी कम करने वाली गतिविधियों से जंगली जीवों से विषाणुओं एवं जीवाणुओं के इंसानों में आने का जोखिम बढ़ता है।”