अमरूद का स्वाद, मिठास एवं खुशबू की चर्चा होने पर जेहन में गंगा यमुना के बीच अवस्थित उत्तर प्रदेश के कौशांबी के सुरखा या सेबिया अमरूद की याद आ जाती है।
कौशांबी की मिट्टी एवं जलवायु एवं धरातलीय बनावट अमरूद की खेती के लिए बहुत ही मुफीद मानी जाती है।
उद्योग विहिन कौशांबी जिले के किसान अनाज की खेती के अलावा अतिरिक्त आय अर्जित करने के उद्देश्य से व्यवसायिक खेती के रूप में अमरूद के बागान लगाने के शौकीन रहे हैं। वर्तमान में जिले में करीब 2500 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर अमरूद के बागान हैं।
कौशांबी का अमरूद अपने रूप रंग, स्वाद व मिठास के लिए पूरे देश में इलाहाबादी सेब के नाम से अरसे से अपनी पहचान बना चुका है। कौशांबी का सुरखा अमरूद जिसे सेविया नाम से जाना जाता है। यहां एक बड़े भू भाग में सेविया अमरूद के बागान हैं। जिले में मुख्य रूप से अमरूद के बागान विकास खंड नेवादा, चायल,मुरतगंज, सिराथू एवं कड़ा में स्थित है। अमरूद के बागानों में वर्ष में दो बार फल देते हैं। वर्षा ऋतु में लगने वाले फल को सवानी अमरूद कहते हैं इसके पकने का समय जुलाई (सावन) महीने से शुरू होता है और दो महीने अमरूद की फसल मिलती है।
सावनी अमरूद यहां डमी फसल मानी जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर बहुत कम आय अर्जित होती है। सावनी अमरूद में पकते ही कीड़े लग जाते है। 50 प्रतिशत से अधिक फलो में कीड़े लगने से खराब हो जाते है। प्रति हेक्टेयर 20-25 हजार की आय मिल पाती है।
सावनी अमरूद के कच्चे फलों को बचाने के लिए किसानों को सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। फल पकने के पूर्व यदि किसान कीटनाशक दवाओं का बागानों में छिड़काव कर दे तो अमरूद की फसल को कीड़ों से बचाया जा सकता है।
अमरूद की दूसरी फसल शीत ऋतु में तैयार होती है। सावनी अमरूद के फल समाप्त होते होते यहां के अमरूद के बागान पुनः फलों से लद जाएंगे। नवम्बर महीने में जिले का प्रसिद्ध सुरखा (सेबिया) अमरूद आना शुरू हो जाता है और फरवरी मार्च तक फसल समाप्त हो जाती है। जिले के प्रमुख अमरूद की प्रजातियों में सुरखा, सफेदा व बीही प्रजाति के अमरूद के बागान हैं। इस वर्ष अमरूद के फ़सल को लेकर यहां के किसान एवं व्यवसायी उत्साहित हैं। वर्षा यदि होती रही तो अमरूद की खेती से अच्छी आय मिलने की उम्मीद है।
जिला उद्यान अधिकारी सुरेन्द्र राम भास्कर ने बताया कf चालू वित्तीय वर्ष में जिले में 15 हेक्टेयर कृषि भूमि में अमरूद के बागान लगाने का सरकारी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इच्छुक किसान अमरूद के बागान लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि करीब 30 हेक्टेयर में किसान स्वत: अमरूद के पेड़ लगाने के लिए उत्साहित हैं। जिले में पिछले 3 दशक में अमरूद के बगानी क्षेत्र पहले कमी आयी है। जिसकी वजह अमरूद में लगने वाला उकठा रोग बताया जा रहा है। इस रोग के चलते तेज़ी से अमरूद के पेड़ सूख रहे है। जिसे लेकर यहां का किसान हतोत्साहित है।