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मजदूर दिवस : तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगे, हम किसी बहाने तुम्हें याद करने लगे

नयी दिल्ली,  एक मई का दिन इतिहास में मजदूर दिवस के तौर पर दर्ज है। यह वह दिन है जब मजूदरों ने अपने हक के लिए आवाज उठाई।

 1 मई को पूरी दुनिया में अंर्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। दुनिया में मजदूर दिवस मनाने का चलन करीब 132 साल पुराना है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1886 में शिकागो में उस समय शुरू हुई थी, जब मजदूर मांग कर रहे थे कि काम की अवधि आठ घंटे हो और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी हो। हड़ताल के दौरान एक व्यक्ति ने बम फोड़ दिया और प्रदर्शनस्थल पर अफरातफरी मच गई। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चलाई। गोलीबारी में कुछ मजदूरों की मौत हो गई, साथ ही कुछ पुलिस अफसर भी मारे गए। इस मामले में एक ट्रायल चला, जांच के अंत में चार अराजकतावादियों को सरेआम फांसी दे दी गई।

हेमार्केट घटना, दुनिया भर के लोगों को क्रोधित करने का कारण बनी। इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए, तब से ही दुनिया के 80 देशों में मई दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा।

भारत में 1923 से इसे राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। भारत में कामगारों की 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से हैं। इनकी संख्या करीब 42 करोड़ है। इनमें से लाखों मजदूर ऐसे हैं जो हर दिन ना कमाएं तो उनके भूखे मरने की नौबत आ सकती है। ये मजदूर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद, नोएडा, गुड़गांव जैसे बड़े शहरों में अपने घर से दूर काम करने आते हैं।

भारत मे अधिकांश मजदूरों के लिये इस बार का मजदूर दिवस अत्यंत कष्टकारी है। जहां एकबार फिर मंदी से निपटने के लिये मजदूरों के काम के घंटों को बढ़ाये जाने की चर्चा शुरू हैं, वहीं भारत में कोरोना वायरस महामारी का सबसे बुरा असर भारत में लाखों अप्रवासी कामगारों पर पड़ा है जो दो जून की रोटी के लिए अपने घर से दूर विभिन्न राज्यों में फंसे हुए हैं।

लॉकडाउन के दौरान कई ऐसी तस्वीरें और खबरें आई जब लोग अपने छोटे बच्चों को कंधे पर उठाए पैदल ही हजारों किलोमीटर के सफर पर अपने गांव घर के लिये निकल गए। कोरोना संकट के बीच इन कामगारों के पास ना खाने के लिए पैसे बचे थे और ना करने के लिए काम। इस संकट में उन्हें सिर्फ अपने घर का रास्ता ही याद आया। ऐसी भी रिपोर्टें आईं कि जब घर पहुंचने पर या पहुंचने के दौरान कुछ लोगों की मौत हो गई।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत में 40 करोड़ गरीब लोग गरीबी में फंस सकते हैं। मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ये पंक्तियाँ मजदूरों के महत्त्व को बहुत सुंदर तरीके से रूपायित करती है –
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे.

यां पर्वत-पर्वत हीरे हैं, यां सागर-सागर मोती हैं
ये सारा माल हमारा है, हम सारा खजाना मांगेंगे.

वो सेठ व्‍यापारी रजवाड़े, दस लाख तो हम हैं दस करोड
ये कब तक अमरीका से, जीने का सहारा मांगेंगे.

जो खून बहे जो बाग उजड़े जो गीत दिलों में कत्ल हुए,
हर कतरे का हर गुंचे का, हर गीत का बदला मांगेंगे.

जब सब सीधा हो जाएगा, जब सब झगडे मिट जाएंगे,
हम मेहनत से उपजाएंगे, बस बांट बराबर खाएंगे.

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे.