प्रयागराज, तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम तट पर पौष पूर्णिमा स्नान के अवसर पर आज कड़ाके की ठंड़ और शीतलहरी पर आस्था का विश्वास भारी पड़ रहा है।देश के कोने-कोने से पहुंचे माघ मेले के पहले स्नान पर त्रिवेणी के तट पर गांगा में मानों आस्था का समन्दर अपनी बाहें फैलाये लाखों श्रद्धालुओं को अपने में अंगीकार कर रहा हो।
मेला प्रशासन ने 32 लाख श्रद्धालुओं के स्नान करने का अनुमान लगाया है। श्रद्धालुओं ने भोर के तीन बजे से ही संगम के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाना शुरू कर दिया।मेले में विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और विविधताओं का संगम दिखायी पड़ रहा है। कड़ाके की ठंड और शीतलहर पर आस्था का विश्वास भारी पड़ रहा है। त्रिवेणी के संगम तट पर सांय-सांय करती तेज हवा और कड़ाके की ठंड में पतित पावनी के जल में भोर के चार बजे से ही श्रद्धालु, कल्पवासी, तीर्थयात्री और सांधु-संतों ने ‘‘हर हर गंगे, ऊं नम: शिवाय, श्री राम जयराम जय जय राम” का उच्चारण करते हुए स्नान शुरू कर दिया।
कल्पवास करने वाले साधु-संत, सन्यासी, दिव्यांग और गृहस्थ श्रद्धालुओं ने स्नान कर घाट पर बैठे पण्डे और पुरोहितों को दान-दक्षिणा देकर पूजन-अर्चना की। कल्पवासी मोह-माया से दूर एक माह तक व्रत, भजन, पूजन और प्रवचन के लिए अपने तम्बुओं में तल्लीन दिखलायी पड़ रहे हैं।संगम तट पर श्रद्धालुओं के स्नान करने के लिए तैयार कराये गये पांच किलोमीटर क्षेत्र में घाटों पर श्रद्धालुओं की डुबकी लगाने की भीड़ लगी हुई है। भोर में स्नान करने वालों की भीड़ कम थी लेकिन दिन चढ़ने के साथ ही स्नान करने वालों की भीड़ बढ़ती गयी। डुबकी लगाने वालों में महिलाएं, बच्चे और बूढ़े और दिव्यांग भी शामिल हैं।
स्नान के बाद श्रद्धालु घाट पर बैठे पण्डे और पुरोहितों को चावल, आटा, नमक, दाल, तिल, आदि का दान किया।प्राचीन काल से संगम तट पर जुटने वाले माघ मेले की जीवंतता में आज भी कोई कमी नहीं आयी है। मेले में आस्था और श्रद्धा से सराबोर पुरानी परम्पराओं के साथ आधुनिकता के रंगबिरंगे नजारे दिखायी पड़ रहे हैं। भारतीयसंस्कृति और आध्यात्म से प्रभावित कई विदेशी भी इस दौरान ‘पुण्य लाभ’ के लिए संगम स्नान करते दिखायी दे रहे हैं।सभी कल्पवासी अपने-अपने शिविरों में बस चुके हैं। मेला क्षेत्र में चारों ओर लाडस्पीकरों पर ‘ऊं नम: शिवाय’ ‘जय-जय राम जय सिया राम’ के नाम की धुन आनंदित कर रही है।
एक तरफ जहां तीन नदियों का संगम है वहीं दूसरीतरफ तम्बुओं के अन्दर से आध्यात्म की बयार बह रही है। चारों ओर धार्मिक अनुष्ठानों के मंत्रोच्चार और हवन में प्रवाहित की जा रही सामग्रियों की भीनी-भीनी खुशबू मेला क्षेत्र के वातावरण को पवित्र और सुगन्धित कर रही है।माघ मेला, अर्द्ध कुंभ और कुंभ आध्यात्मिक मेला दुनिया में प्रसिद्ध है। यह मेला 43 दिनों तक चलेगा। माघ मेले को मिनी कुंभ भी कहा जाता है।प्रयाग में कल्पवास की परंपरा सदियों पुरानी है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इसका प्रमाण इस चौपाई से दिया है कि ‘‘माघ मकरगत रवि जब होई-तीरथपति आवै सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं-सादर मज्जहिंसकल त्रिबेनी।
”जल पुलिस प्रभारी कड़ेदीन यादव ने बताया कि करीब पांच किलोमीटर लंबे क्षेत्र में स्नान घाटों के साथ पूरे मेला क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं। पुलिस और निजी गोताखोरों को घाट के इर्द-गिर्द ही रहने का निर्देश दिया गया है। स्नानार्थियों को एक निर्धारित सीमा से आगे नहीं बढ़ने के लिए रस्सी लगाकर प्रतिबंधित किया गया है। मोटरबोट पर लगातार भ्रमण कर रहे पुलिस और गोताखोर के लोग निगरनी कर रहे हैं।उन्होंने बताया कि मेले में 103 गोताखोर लगाये गये हैं जिनमें 23 सरकारी और 80 निजी हैं। घाटों पर डि्यूटी के लिए किराये की 130 नाव के साथ 30 मोटरबोट लगाई गयी है।