नयी दिल्ली, लॉकडॉउन के दौरान असम में गेंदे के फूलों के नहीं बिकने के कारण किसानों ने इसे मुर्गियों का चारा बना दिया जिससे अंडे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई ।
असम के कामरूप जिले में किसानों ने लॉकडाउन के दौरान गेंदा के फूलों को नहीं बिकने पर कृषि विज्ञान केन्द्र की सलाह पर उसे धूप में सूखा दिया । फूलों की पंखुड़ियों को धूप में सूखने के बाद उसे मुर्गियों के चारे में मिलाकर उन्हें खिलाया गया । बाद में मुर्गियों के जो अंडे मिले, उनमें केरोटीन की मात्रा काफी अधिक पाई गई जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
कैरोटीनॉड्स में बीटा-कैरोटीन बेहद जरूरी है। बीटा-कैरोटीन पौधों और फलों (विशेषकर गाजर) में पाया जाने वाला एक लाल, नारंगी और पीला पिग्मेंट या रंग है। गहरे लाल, नारंगी और पीले रंग वाले फल और सब्जियों से हमें बीटा-कैरोटीन प्राप्त होता है।
इनमें मौजूद फाइटोकेमिकल्स (पौधों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ) श्लेष्मा संश्लेषक झिल्ली (म्यूकोस मेम्ब्रेन) का गठन करके खाद्य पदार्थो में रंग उत्पादित करता है। बीटा-कैरोटीन अपने आप में कोई पोषक तत्व नहीं है, लेकिन यह रेटिनॉल में बदल कर हमारे शरीर में विटामिन ए की आपूर्ति करता है, जो कई प्रकार के आंखों के रोग, कैंसर, हृदय संबंधी रोगों के निवारण में सक्षम है।
कामरूप जिले की मिट्टी और जलवायु फूलों की खेती के अनुरूप है जिसके कारण वहां सालों भर गेंदे के साथ ही गुलाब , जरबेरा , आर्किड आदि की खेती की जाती है । इन फूलों की आपूर्ति गुवाहाटी और अन्य स्थानों में की जाती है ।
लॉकडाउन के कारण मंदिर , होटल , रेस्टोरेंट , हॉल , शादी समारोह , आम सभाएं तथा कई अन्य प्रकार के आयोजन बंद हो गए थे । किसान फूलों को रोज तोड़ते थे लेकिन उनकी बिक्री नहीं हो पाती थी, जिससे उनका काफी आर्थिक नुकसान हो रहा था । कामरूप कृषि विज्ञान केन्द्र ने किसानों को फूलों को धूप में सुखाने की सलाह दी और उनकी पंखुड़ियों को मुर्गी चारा में मिलने की सलाह दी । करीब 100 किलो चारे में दो से तीन किलो पंखुड़ियों को मिलाया गया ।
इसके बाद जो अंडे मिले, उनमें पहले की तुलना में केरोटीन की मात्रा काफी अधिक पायी गयी। अंडे के पीले हिस्से को देखने से भी यह साफ हो गया ।