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फाइलेरिया रोग उन्मूलन हेतु मीडिया वर्कशाप, 21 दिसम्बर से शुरू होगा अभियान

लखनऊ ,उत्तर प्रदेश में फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया। अभियान की शुरूआत 21 दिसम्बर से होगी। 

मीडिया वर्कशाप  को संबोधित करते हुये संयुक्त निदेशक फ़ाइलेरिया, डॉ. वी.पी.सिंह ने बताया कि,  वर्ष 2021 तक भारत को फाइलेरिया से उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए, प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश के 8 जिलों (औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, कन्नौज, कौशांबी, रायबरेली एवं सुल्तानपुर) में, मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एम.डी.ए.) अभियान  21 दिसम्बर से शुरू करने का निर्णय लिया है। एमडीए गतिविधियों का संचालन कोविड-19 के मानकों का पालन करते हुए किया जाएगा, जिसमें हाथ की स्वच्छता, मास्क और शारीरिक दूरी (दो गज की दूरी) शामिल हैं।

उन्होने बताया कि अभियान में सभी वर्गों के एक करोड़ पचासी लाख पैतालीस हज़ार छ: सौ चौसठ (1,85,45,664) लाभार्थियों को फाइलेरिया से सुरक्षित रखने के लिए डी.ई.सी. और अल्बंडाज़ोल की निर्धारित खुराक प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा घर-घर जाकर, अपने सामने मुफ्त खिलाई जाएगी एवं किसी भी स्थिति में, दवा का वितरण नहीं किया जायेगा। 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को ये दवाएं नहीं खिलाई जाएगी।

संयुक्त निदेशक फ़ाइलेरिया के अनुसार, रक्तचाप, शुगर, अर्थरायीटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को ये दवाएं खानी हैं। सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं | और अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कीटाणु मौजूद हैं, जोकि दवा खाने के बाद कीटाणुओं के मरने के कारण उत्पन्न होते हैं।

इस अवसर पर, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश के निदेशक वेक्टर बोर्न डिजीजेज़,  डॉ. अशोक पालीवाल ने कहा कि प्रदेश सरकार वेक्टर बोर्न डिजीजेज़, जैसे फाइलेरिया, कालाजार रोग आदि के उन्मूलन के लिए अत्यंत संवेदनशील है और इसके लिए रणनीति बनाकर गतिविधियाँ संपादित की जा रही हैं। उन्होने जनांदोलन की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि फाइलेरिया की दवाएं, साल में एक बार, लगातार तीन साल ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ. तनुज शर्मा ने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव रोग, मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इसका इलाज न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे; हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फोएडेमा(अंगों की सूजन) व काइलुरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने मीडिया सहयोगियों से संवाद करते हुए कहा कि फाइलेरिया रोग उन्मूलन हेतु मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। मीडिया द्वारा फाइलेरिया रोधी दवा के सेवन और इसके सकारात्मक परिणामों के बारे में जागरूकता फ़ैलाने की आवश्यकता बहुत अधिक है ताकि, लोग स्वयं को और अपने परिवार को इस घातक बीमारी से सुरक्षित रख सकें ।

ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के अनुज घोष ने मीडिया सहयोगियों से अनुरोध किया कि वे आगामी 21 दिसम्बर से प्रारंभ होने वाले एमडीए अभियान के दौरान, समाचारों और मीडिया कवरेज के माध्यम से लोगों को लिम्फैटिक फाइलेरियासिस से बचाव के लिए दवा खाने के लिए जागरूक करें।

प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के ध्रुव सिंह ने बताया कि अभियान की सफलता के लिए ग्राम प्रधानों के सहयोग से सोशल मोबिलाइजेशन किया जा रहा हैं।  फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की तिथि के बारे में समुदाय में जागरूकता फ़ैलाने के लिए आशा और आंगनवाडी के माध्यम से घर-घर जाकर, साथ ही स्थानीय स्कूलों के बच्चों के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जा सकता है।

अंत में , पाथ के प्रतिनिधि डॉ. शोएब अनवर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कहा कि समुदाय एवं मीडिया के सहयोग से यह कार्यक्रम अवश्य सफल होगा।

कार्यशाला में मुख्य रूप से पायनियर संवाददाता विश्वजीत बनर्जी, न्यूज85 डाट इन के संपादक अनुराग यादव, मीडिया विशेषज्ञ फिरोज आलम व अन्य मीडिया सहयोगियों की उपस्थिति के साथ ही उन 8 जनपदों के मीडिया विशेषज्ञों ने भी वर्चुअल रूप से भाग लिया । मीडिया वर्कशाप का आयोजन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं यथा विश्व स्वास्थ्य संगठन, पाथ , प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल और सीफार के समन्वय से किया गया।