लखनऊ, उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक बार फिर चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। कानपुर देहात में एक गरीब की झोपड़ी को बुलडोजर से ध्वस्त किये जाने के बाद से राज्य में बुलडोजर को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गयी है, प्रदेश की योगी सरकार ने इसे न्याय के प्रतीक के तौर पर स्थापित किया और कहा कि गरीबों को न्याय दिलाने के लिए सरकार का बुलडोजर माफियाओं के अवैध निर्माण को ढहाने की कार्रवाई कर रहा है, लेकिन जिला प्रशासन जिस तरह से गरीबों की झोपड़ियों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल कर रहा है, उससे यह साफ़ हो गया है कि बुलडोजर न्याय का नहीं बल्कि विध्वंस
का प्रतीक है। कानपुर देहात के मडौली गाँव में एक गरीब कृष्ण गोपाल दीक्षित की झोपड़ी को हटाने के लिए जिस तरह से जिला प्रशासन ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया, इससे साफ़ है कि बुलडोजर न्याय का प्रतीक तो कतई नहीं हो सकता, एक गरीब की झोपड़ी ही नहीं ढहाई गयी बल्कि इसमें दो जिंदगी भी चली गयी, झोपड़ी हटाने के लिए चलाये गए बुलडोजर के दौरान झोपड़ी में आग भी लगी या लगायी गयी ये तो जांच का विषय है, लेकिन आग में जलकर पीड़ित माँ-बेटी की मौत हो गयी। दो निर्दोष लोगों की मौत के बाद सरकार हरकत में आई और सम्बंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी की, लेकिन जिस तरह से शव को दफनाने को लेकर जिला और पुलिस प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को भी नहीं शामिल होने दिया, इसको लेकर भी आम जनमानस में आक्रोश है। जमीन पर कब्ज़ा करने के लिए भूमाफियाओं के कहने पर जिला प्रशासन द्वारा की गयी बुलडोजर कार्रवाई ने दो निर्दोष लोगों की जान जरूर ले ली। झोपड़ी को गिराने के लिए अदालत का आदेश था या केवल जिला प्रशासन के आदेश से ही झोपड़ी को ढहा दिया गया, फिलहाल मामले की जांच चल रही है, जांच रिपोर्ट आने के बाद स्थिति स्पष्ट होगी, लेकिन जिस तरह से बुलडोजर की जद में आई झोपड़ी और झोपड़ी में मौजूद माँ-बेटी की मौत से यह तो साफ़ है कि बुलडोजर अब कम से कम न्याय का तो प्रतीक नहीं बचा है।
इस घटना को लेकर जनता में गुस्सा है तो विपक्ष सडकों पर है, लेकिन सरकार ने जिस तरह से बुलडोजर को न्याय का प्रतीक बनाकर आमजन के सामने प्रस्तुत किया है, उसके बाद बुलडोजर की जद में आये कई जिलों में तमाम गरीबों के मकान जमींदोज हो गए, लेकिन इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को लागू करने में राजनीतिक आकाओं के साथ ही जिला व पुलिस प्रशासन के आला अधिकारीयों का हुक्म ही सर्वोपरि माना जा रहा है, मातहत अधिकारी जिसकी तामील करना सिर्फ अपना फर्ज समझते हैं। ये सवाल आज हैरानी के साथ कई हल्के में इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि विध्वंस का प्रतीक बुलडोजर ही न्याय का प्रतीक बनता दिख रहा है। सख्त कार्रवाई के नाम पर नियमों को ताक पर रख निर्माण ढहाए जा रहे हैं। कोर्ट के आदेश तक की परवाह भी देर से की जाती है। ऐसा नहीं कि अवैध ढांचा गिराने में पहली बार बुलडोजर का इस्तेमाल हो रहा हो, लेकिन यह पहली बार है कि बुलडोजर के निशाने पर सरकार का विरोध करने वालों के साथ ही गरीब जनता भी है सरकार एक तरफ सरकार गरीबों को स्थायी आशियाना देने के लिए हर जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास बनाकर दे रही है, वहीँ दूसरी तरफ गरीबों की झोपड़ी को बुलडोजर चलाकर जमींदोज किया जा रहा है। दरअसल सरकार ने एक वर्ग विशेष के खिलाफ इस बुलडोजर का ज्यादा इस्तेमाल किया, लेकिन अब इसका इस्तेमाल भूमाफिया अपनी मनचाही जमीन को कब्जाने के लिए जिला व पुलिस प्रशासन के सहयोग से इस बुलडोजर का इस्तेमाल गरीबों के खिलाफ भी कर रहे हैं कानपुर देहात की घटना इसका जीता जागता उदाहरण है।
सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहदुर का कहना है कि इससे पहले भी बुलडोजर द्वारा की गयी कार्रवाई का मुद्दा उठा है। प्रदेश सरकार बुलडोजर को प्रदेश के विकास के तौर पर पेश करती रही है, चुनावी रैलियों में भी बुलडोजर को विकास का प्रतीक बताया गया, लेकिन जिस तरह से बुलडोजर का इस्तेमाल गरीबों के खिलाफ किया जाने लगा है उसका दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है, कानपुर देहात में इसी बुलडोजर की कार्रवाई का नतीजा रहा कि दो निर्दोष लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि इस मामले की तो शासन स्तर पर जांच हो रही है, लेकिन प्रदेश के लगभग सभी जिलों में गरीबों के घर ढहाए गए हैं, इनकी भी समुचित जांच कराई जानी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार- कमल जयंत