रायबरेली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, मिशन 2019 की शुरुआत
December 16, 2018
रायबरेली , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में रविवार को पहली बार आम जनता से मुखातिब हुये। सूत्रों के अनुसार, रायबरेली से मोदी अपने मिशन 2019 की शुरुआत करने जा रहे है।
भाजपा सूत्रों की मानें तो पार्टी जिन 122 लोकसभा सीटों को नहीं जीत पाई है वहां रैली करके जनसमर्थन जुटाने की योजना बनाई गयी है और भाजपा जनवरी के अंत तक सभी 122 सीटों पर रैलियों का आयोजन करके अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम करेगी। इन रैलियों को या तो प्रधानमंत्री खुद सम्बोधित करेंगे या फिर केंद्र सरकार के मंत्री। हालाँकि रायबरेली और अमेठी सीट उनके इस प्लान में शामिल नहीं है फिर भी रायबरेली से मोदी अपने मिशन 2019 की शुरुवात करने जा रहे है।
रायबरेली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, ऐसे में नरेंद्र मोदी समेत समूची भारतीय जनता पार्टी की निगाहे उस अभेद किले को भेदने पर टिकी है जिसे भेदना काफी मुश्किल माना जाता है। नरेंद्र मोदी के लिए रायबरेली एक अहम् चुनौती है क्योंकि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कार्यकर्ताओं के हौसले पस्त है।
ऐसा नहीं है कि रायबरेली में कभी कमल खिला नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वर्ष 1996 में ये कारनामा कर चुके है। मोदी की कोशिश उस हौसले को जगाने की होगी जो करीब 20 साल पहले कार्यकर्ताओं में हुआ करता था। नरेंद्र मोदी इसी जोश को जगाने रायबरेली आयें है। उनके जहन में कार्यकर्ताओं में उस जोश को जगाने की दिखी जिसकी बदौलत दो दशक पहले भारतीय जनता पार्टी का कमल यहां खिल उठा था।
शायद उन्हें ग्रीक टर्म ष्फीनिक्स से वो चिंगारी मिल गई है। फीनिक्स एक ग्रीक माइथोलोजी है जिसमे एक काल्पनिक चिड़िया जलकर राख हो जाती है और ऐसा माना जाता है कि कुछ सालो बाद उसी राख से दुबारा पैदा हो जाती है। कमल के बीज जो रायबरेली में बीस साल पहले से है शायद मोदी के दौरे के बाद उसमे कुछ जान आ जाये।
पीएम मोदी के सामने सबसे बड़ा संकट रायबरेली से लोकसभा की उम्मीदवारी है। मोदी इस दौरे से जनता की नब्ज़ टटोलने का काम भी करेंगे। रायबरेली से उम्मीदवारी की बात करें तो ऐसे में भाजपा के एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह इस रेस में सबसे आगे है क्योंकि परिस्थितियां उनके साथ है और इतिहास भी। वर्ष 1996 में श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अशोक सिंह पर दांव खेला था और वो सफल भी रहे थे। उस दौर में अशोक सिंह के भाई अखिलेश प्रताप सिंह कांग्रेस के विधायक थे और उन्ही खेमे के राकेश प्रताप सिंह एमएलसी हुआ करते थे। आज भी कमोवेश वैसी ही परिस्थितियां दिखाई पड़ रहीं है। दिनेश प्रताप सिंह खुद एमएलसी है।
दिनेश प्रताप सिंह के भाई राकेश प्रताप सिंह कांग्रेस के विधायक है और दूसरे भाई अवधेश प्रताप सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष है। भाजपा यहां से किसी स्थानीय उम्मीदवार को आजमाना चाहेगी क्योंकि इससे पहले ज्यादातर उम्मीदवार आयातित रहे जिन्हे रायबरेली की जनता ने नकार दिया। हालाँकि रायबरेली से कुमार विश्वास, विनय कटियार और रीता बहुगुणा जोशी को लाने की खबरे भी मीडिया में आई है लेकिन उनकी उम्मीदवारी बहुत ज्यादा दमदार दिखाई नहीं पड़ रही है।
भाजपा ; उस समय जनता पार्टी, चौधरी चरण सिंह के अलग होने के बाद छह अप्रैल 1980 भाजपा का गठन हुआ था, इससे पहले 1980 में रायबरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के मुकाबले भारतीय जनसंघ की कद्दावर नेता विजय राजे सिंधिया को मैदान में उतार चुकी है। विजय राजे सिंधिया राष्ट्रीय राजनीति में तब चर्चा में आ गयी थी जब 1980 में उन्होंने भाजपा के राम जन्मभूमि मुद्दे को प्रचारित करने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन वो नाकाम रही और रायबरेली से इंदिरा को जीत मिली थी।
भाजपा ने 1999 के चुनाव में गांधी परिवार के करीबी रहे अरुण नेहरू को उतारा था। इस चुनाव में पहली बार प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली और एक दिन में बाज़ी पलट कर रख दी थी। प्रियंका ने लोगों से कहा था कि मुझे आपसे शिकायत हैए आपने ऐसे आदमी को रायबरेली में घुसने कैसे दिया। जो अपने परिवार का नहीं हुआ, वो आपका क्या होगा। बस यही से पासा पलट गया और कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा को रायबरेली की जनता ने लोकसभा में भेजा।
2004 में स्थानीय पूर्व विधायक गिरीश नारायण पांडेय को भी भाजपा मैदान में उतार चुकी है। 2006 के उप चुनाव में विनय कटियार को भी भाजपा ने उतारा था लेकिन वो महज 3ण्33 प्रतिशत वोट ही जुटा सके। इसके अलावा भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को मैदान में उतारा लेकिन वो भी कोई कमाल नहीं कर सके और श्रीमती सोनिया गांधी यहाँ से चुनाव जीत गई।