लखनऊ, दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के शव का शुक्रवार देर शाम भैरव घाट स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कर दिया गया। न कोई विरोध न कोई प्रदर्शन… न कोई साधू न कोई संत… देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ।
इस घटना ने मथुरा में दो जूून 2016 को जवाहरबाग को खाली कराने के लिए हुई हिंसा के मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव की याद ताजा कर दी। उस हिंसा में दो पुलिस वाले शहीद हुये थे। फायरिंग मे एक मथुरा के एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी व दूसरे फरह थाने के प्रभारी संतोष यादव शहीद हो गए थे। रामवृक्ष यादव और उसके 27 समर्थक भी मारे गए थे।
मारे जाने के बाद भी साधु संतों ने रामवृक्ष यादव का पीछा नही छोड़ा था। साधुसंतों मे रामवृक्ष यादव के खिलाफ इस कदर नफरत थी कि संतों ने उनका अंतिम संस्कार वृंदावन मे नहीं करने दिया था। संतों ने कहा था कि वृंदावन की रज में मिलने का सौभाग्य पुण्यात्माओं को मिलता है, इन पापियों के शव का स्पर्श भी यहां की रज से नहीं होने देंगे।
महामंडलेश्वर नवल गिरि महाराज और महंत फूलडोल बिहारी दास अन्य संतों के साथ यमुना के वंशीवट घाट के पास स्थित श्मशान घाट पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। यहां प्रदर्शन होते देख पुलिस ने पानीगांव के पास यमुना किनारे अंतिम संस्कार की तैयारी कर ली। संत वहां भी पहुंच गए और धमकी दी थी कि वृंदावन में किसी भी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया तो जनता के साथ मिलकर आंदोलन किया जाएगा। काफी मनुहार के बाद भी संतों के तेवर नरम नहीं पड़े, तो पुलिस ने मथुरा में ही रामवृक्ष यादव सहित 19 कथित सत्याग्रहियों को खाक में मिला दिया।
वहीं कानपुर में हुई मुठभेड़ में दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों को मारा था। विकास दुबे का एक भी आदमी नही मारा गया था। लेकिन कानपुर मे साधु संतों ने दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के भैरव घाट पर अंतिम संस्कार का कोई विरोध नहीं किया।
कानपुर में विकास दुबे का पोस्टमॉर्टम होने के बाद शव का अंतिम संस्कार भैरव घाट पर कर दिया गया। भैरव घाट पर विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे, छोटा बेटा, विकास दुबे की मां और बहनोई दिनेश तिवारी मौजूद थे। विकास को अंतिम मुखाग्नि उसके बहनोई दिनेश तिवारी ने दी।
भैरव घाट पर विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे न केवल मौजूद रहीं बल्कि मीडियाकर्मियों के लिये आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल भी किया। उसने पुलिस के सामने खुलेआम धमकी देते हुये कहा कि ‘भाग जाओ, जिसने जैसा सलूक किया है, उसको वैसा ही सबक सिखाऊंगी। अगर जरूरत पड़ी तो बंदूक भी उठाऊंगी।’ इस दौरान घाट के आसपास बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया।
अब सवाल ये उठता है कि क्या साधु संतों की नजर मे विकास दुबे , रामवृक्ष यादव से कम पापी था ? या कानपुर के भैरव घाट की रज पावन नहीं है ? जबकि ये वही भैरव घाट है जहां अभी 5 जुलाई को विकास दुबे के साथ मुठभेड़ में शहीद डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा की बेटी वैष्णवी ने अपने पिता को मुखाग्नि दी?
क्या साधु संतों की नजर मे शहीद डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा और दुर्दांत अपराधी विकास दुबे मे कोई अंतर नहीं है? आखिर साधु संतों का ये दोहरा चरित्र क्यों ?