वैज्ञानिकों ने पैदा किया पहला बंदर-सुअर, तस्वीर देखकर हैरान रह जाएंगे

नई दिल्ली,वैज्ञानिकों  ने एक बार फिर अपनी वैज्ञानिक तकनीक से दुनिया भर  के लोगों को हैरान कर दिया है। चीन के वैज्ञानिकों ने बंदर और सुअर के जीन्स का प्रयोग करते हुए एक नई ब्रिड के जानवर पैदा किए, इनको पहला बंदर-सुअर प्रजाति नाम दिया गया।

चीन के वैज्ञानिकों ने बंदर और सुअर के जीन्स को लेकर ये नया प्रयोग किया है। उन्होंने ऐसे सिर्फ दो बच्चे पैदा किए थे। बच्चे में जानवरों के दिल, यकृत, प्लीहा , फेफड़े और त्वचा में सिनोमोलगस बंदरों से आनुवंशिक सामग्री थी। एक सप्ताह के दौरान इन दोनों बंदरों की मौत हो गई। सन, डेलीमेल जैसे कुछ प्रमुख साइटों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

बीजिंग की स्टेट सेल की प्रमुख प्रयोगशाला और प्रजनन जीवविज्ञान में ये प्रयोग किया गया। यहां के वैज्ञानिक तांग हाइ ने बताया कि यह पूरी तरह से बंदर-सुअर की पहली रिपोर्ट है। उन्होंने बताया कि जो दोनों बंदर-सुअर के बच्चे मर गए। उन पांच-दिवसीय पिगलेट भ्रूण में बंदर की स्टेम कोशिकाएं थीं, जोकि एक समृद्ध प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए उसमें समायोजित की गई थीं, जिससे शोधकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद मिली कि कोशिकाएं कहां समाप्त हुईं। वैज्ञानिकों ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं था कि इन दोनों बंदर-सुअर की मृत्यु क्यों हुई। उनका कहना है कि इनकी मौत आइवीएफ प्रक्रिया में किसी तरह की समस्या की वजह से रही होगी।

वैज्ञानिक समुदाय के कुछ सदस्यों ने इस तरह के प्रयोग पर चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि ये प्रयोग नैतिक आधार पर नहीं किए गए हैं। इससे कई नैतिक चिंताएं पैदा हो रही हैं। कनाडा के किंग्स्टन में क्वीन्स यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंटिस्ट डगलस मुनोज ने कहा कि इस तरह की शोध परियोजनाएं वास्तव में मुझे नैतिक रूप से डराती हैं। उन्होंने कहा कि हमें इस तरह से जीवन के कार्यों में हेरफेर नहीं करना चाहिए। यदि कोई प्रयोग किया भी जा रहा है तो उसमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो किस वर्ग के लाभ के लिए होगा।

इससे पहले चीन ने बंदरों पर मानव के दिमाग को लगाने के लिए एक प्रयोग शुरू किया था, उनका इस तरह का प्रयोग करने का उद्देश्य अल्जाइमर जैसे रोगों पर रिसर्च करना था मगर उस पर भी रोक नहीं लगी। येल विश्वविद्यालय के स्टेम सेल विशेषज्ञ अलेजांद्रो डी लॉस एंजिल्स ने लिखा है कि मानव रोग को प्रोत्साहित करने के लिए एक बेहतर पशु मॉडल की खोज दशकों से बायोमेडिकल शोध का एक विषय रहा है।

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