सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मीडिया पर लगाई बंदिश….
August 12, 2018
नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि वह उन कानूनी प्रावधानों का परीक्षण करेगा जिनमें यौन हमलों की घटनाओं की रिपोर्टिंग के मामले में मीडिया के लिए कुछ बंदिशें और संतुलन तय किए गए हैं। न्यायालय ने यह टिप्पणी तब की है जब ऐसी शिकायतें हुई हैं कि यौन हमलों की घटनाओं की रिपोर्टिंग से जुड़े कानूनी प्रावधानों का नियमित तौर पर उल्लंघन हो रहा है।
शीर्ष न्यायालय को बताया गया कि आज के समय में जब कोई मामला अदालत में विचाराधीन भी होता है, फिर भी एक समानांतर मीडिया ट्रायल चल रहा होता है, जैसा कि कठुआ सामूहिक बलात्कार-हत्याकांड की हालिया घटना में हुआ। अदालत मित्र के तौर पर अदालत की मदद कर रहीं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि यौन हमले की किसी पीड़िता की पहचान का खुलासा करना उसकी निजता में दखल है और इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
जयसिंह ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि इस बाबत मीडिया रिपोर्टिंग के दौरान पालन किए जाने वाले नियमों की व्याख्या की जरूरत है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि ऐसी पीड़िताओं के अधिकारों और ऐसी घटनाओं के बारे में खबरें लिखने के मीडिया के अधिकारों में संतुलन कायम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय को आईपीसी की धारा 228-ए और पॉक्सो कानून की धारा 23 की व्याख्या करने की जरूरत है।
जयसिंह ने न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की सदस्यता वाली पीठ से कहा, ‘‘संतुलन बनाना होगा। हम मीडिया पर पूरी तरह पाबंदी नहीं चाहते, लेकिन पीड़िता की पहचान की हिफाजत करनी होगी। मीडिया ट्रायल भी नहीं होना चाहिए। इस पर पीठ ने जयसिंह से कहा, ‘‘हम इस पर आपको सुनेंगे। पीठ ने कहा, ‘‘क्या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं से किसी को सुनने की जरूरत है, क्योंकि तब मीडिया कहेगा कि उसे सुना ही नहीं गया।’’
अदालत की अवमानना कानून का हवाला देते हुए जयसिंह ने पीठ को बताया कि मीडिया अब ‘‘रिपोर्टिंग से आगे बढ़ चुका है’’ और अदालत के फैसले से पहले ही तय करने लगा है कि किसे आरोपी होना चाहिए। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में वह पीसीआई को नोटिस जारी करेगी। बाद में पीठ ने कहा कि वह दलीलों पर पांच सितंबर को सुनवाई करेगी।
सुनवाई के दौरान जयसिंह ने कहा कि यौन हमलों और तेजाब हमलों के पीड़ितों के मुआवजे के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार की ओर से तैयार योजना को सभी राज्यों द्वारा अधिसूचित किया जाना चाहिए क्योंकि उच्चतम न्यायालय भी इसे स्वीकार कर चुका है। उन्होंने कहा कि यौन हमलों/अन्य अपराधों की महिला पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना-2018 उस तारीख से प्रभावी होगी जब से इसे अधिसूचित किया जाएगा और इसके लिए समयसीमा होनी चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘इसे दो अक्तूबर को सूचीबद्ध करें।