नई दिल्ली, राजनीति मे जहां एक दूसरे को दांव देकर आगे निकलने की होड़ सामान्य बात है वहीं कुछ राजनेता एेसे भी हैं जो अपने किये वादे भूलते नही और मौका आने पर उसे पूरा करतें हैं। एेसे ही राजनेता हैं राजद अध्यक्ष लालू यादव और उनके बेटे व बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव।
राज्यसभा मे दलित उत्पीड़न को लेकर बीएसपी अध्यक्ष मायावती के वक्त्व्य को भाजपा द्वारा न सुने जाने और व्यवधान उत्पन्न करने से नाराज होकर मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। लालू प्रसाद यादव की इच्छा थी कि मायावती जैसी नेता को राज्यसभा मे रहना चाहिये, जिससे देश भर मे हो रहे दलित उत्पीड़न की समस्या को सदन मे प्रमुखता से उठाया जा सके। इसलिये उस समय लालू प्रसाद यादव ने मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे पर दुख जाहिर करते हुये घोषणा की थी कि वह मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजेंगे । क्योंति यूपी मे मायावती के पास इतने विधायक नहीं हैं कि वह राज्यसभा जा सकें।
उस घटना और लालू प्रसाद यादव की घोषणा को समय बीत गया। लोग भूल गये पर लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव नही भूले। पटना में रविदास जयंती के मौके पर बोलते हुये तेजस्वी यादव ने बताया कि जैसे ही राज्यसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हुई, उन्होंने मायावतीजी को फ़ोन किया, क्योंकि उनके पिता लालू यादव ने एक से अधिक बार घोषणा की थी कि राज्यसभा चुनाव में वह बहनजी को बिहार से अपनी पार्टी के समर्थन से भेजेंगे।
तेजस्वी यादव ने बताया कि इस पर मायावती ने भाजपा को लेकर एक बड़ा खुलासा किया। वह भाजपा द्वारा राज्यसभा मे अपने साथ किये बर्ताव से किस कदर नाराज हैं , इसका अंदाजा उनके जवाब से लगाया जा सकता है। मायावती ने फोन पर तेजस्वी यादव को बताया कि जब तक सदन में भाजपा का बहुमत है तबतक वह राज्यसभा की सदस्य नहीं बनना चाहतीं हैं। यह बात जरूर है कि मायावती के सदन मे न रहने का सबसे बड़ा नुकसान दलित समाज को होगा , क्योंकि उनके उत्पीड़न की बात उठाने वाली नेत्री अब सदन मे नही होगी। पर लालू यादव ने अपना वादा पूरा करके राजनीति मे विश्वास की एक नई स्वस्थ परंपरा की नींव डाल दी है।