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दलितों के मसीहा कहे जाने वाले कांशीराम की आज 87वीं जयंती

लखनऊ, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और दलितों के मसीहा कहे जाने वाले कांशीराम की आज यानी 15 मार्च को 87वीं जयंती हैं। दलित राजनीति की बदौलत देश के लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे बहुजन समाज पार्टी संस्थापक कांशीराम की आज जयंती है। उनकी जयंती को देशभर में मनाया गया।

जाति के भेदभाव में गले तक डूबे समाज और नेता जहां जाति उन्मूलन की बात करते रहे कांशीराम ने खुलकर जाति की बात की. वो भी बड़े तल्ख तेवर के साथ. ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनके मारो जूते चार’ या ठाकुर बामन बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएसफोर’ जैसे नारे हों या आर्यावर्त को चमारावर्त बनाने की बात, कांशीराम नें ठीक वहीं पर चोट की जहां सबसे ज्यादा दर्द हो.

कांशीराम ने गरीबों, दलितों को जीने की राह दिखाई है. कांशीराम का उद्देश्य सर्व जनहिताय, सर्व जनसुखाय रहा. कांशीराम उन लोगों में से थे जो अपना सुख आराम त्याग कर गरीबों की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर देते हैं. जिंदगी भर अविवाहित रहकर, बिना किसी लाभ के पद पर रहे हुए उन्होंने बीएसपी और दलित समाज को संगठित किया. सोशल इंजीनियरिंग का उन्होंने जो सफल मंत्र दिया वह भारतीय इतिहास में अद्वितीय है.

पंजाब के रोपड़ जिले में 15 मार्च, 1934 को जन्मे विज्ञान स्नातक कांशीराम ने दलित राजनीति की शुरूआत बामसेफ नाम के अपने कर्मचारी संगठन के जरिए की। उन्होंने दलित कामगारों को एक सूत्र में बांधा और निॢववाद रूप से उनके सबसे बड़े नेता रहे। पुणे में डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में साइंटिफिक असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके कांशीराम ने नौकरी छोड़कर दलित राजनीति का बीड़ा उठाया। दलितों को एकजुट कर उन्हेंं राजनीतिक ताकत बनाने का अभियान 1970 के दशक में शुरू किया। कई वर्षों के कठिन परिश्रम और प्रभावशाली संगठन क्षमता के बूते उन्होंने बसपा को सत्ता के गलियारों तक पहुंचा दिया। बामसेफ के बाद उन्होंने दलित-शोषित मंच डीएस-फोर का गठन 1980 के दशक में किया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी बनाकर चुनावी राजनीति में उतरे। 1990 के दशक तक आते-आते बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका हासिल कर ली। कांशीराम ने हमेशा खुलकर कहा कि उनकी पार्टी सत्ता की राजनीति करती है और उसे किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहिए। यह दलितों के आत्मसम्मान और आत्मबल के लिए जरूरी है।

कांशीराम ने पहला चुनाव इटावा में जीता था। इसमें उनकी मदद समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने की थी। इटावा में 47 प्रत्याशियों को हराकर कांशीराम पहली बार इटावा से लोकसभा में पहुंचे थे। इटावा की अनारक्षित सीट पर 1991 में लोकसभा उपचुनाव में बसपा के प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। यहां पर जीत दर्ज करने वाले कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले थे। इनके मुकाबले भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 22 हजार 466 मत कम मिले।