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वेबिनार में कोविड-19 से निपटने का अचूक अस्त्र का चला पता?

मेरठ, लगभग समूची दुनिया में दहशत का पर्याय बना सूक्ष्म विषाणु कोविड-19 से निपटने में फिलहाल अनुशासित जीवनशैली अचूक अस्त्र साबित हो सकती है।

मेरठ के शोभित विश्वविद्यालय में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात सूक्ष्मजीव वैज्ञानिकों की ऑनलाइन संगोष्ठी (वेबिनार) में यह विचार व्यक्त किये गये। चीन में जिनजिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी की पूर्व एमीरेट्स प्रोफेसर डा अमीना अथर ने कहा कि दुनिया को कोरोना वायरस के खात्मे का इंतजार करने के बजाय उससे लड़ कर ही जीना सीखना होगा। इसका सफल टीका बनने या प्रभावी उपचार मिलने तक पहले जैसा जीवन जीने के बारे में सोचना भी बेमानी होगी।

ओल्डनबर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी में वैज्ञानिक निर्देशक अनुसंधान के पद पर कार्यरत डा अथर की कोरोना पर विशेष शोध करने पर चीन और यूरोपीय देशों द्वारा उनकी बड़े पैमाना पर सराहना की गई है। उन्होने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ईमानदारी से करने की जरूरत है। मास्क के बगैर घर से बाहर निकलना सूक्ष्म विषाणु का निमंत्रण देने के समान होगा। विवाह या अन्य किसी समारोह से परहेज, हाथ मिलाने को फिलहाल अलविदा कह कर और स्कूलों को एक तिहाई छात्र संख्या के आधार पर कई शिफ्टों में चलाने जैसी चीजों को निजी जिंदगी में शामिल करना होगा।

शोभित विवि के कुलपति और जाने माने सूक्ष्मजीव विज्ञानी प्रो डा अमर प्रकाश गर्ग ने कहा कि सामाजिक एवं दिनचर्या में बदलाव की आदत डालकर ही कोरोना से जंग जीती जा सकती है।
डा गर्ग ने कहा “ जब तक कोरोना वायरस का प्रभावी उपचार मिले या सफल टीका बन जाये और हमारे देश के हर नागरिक को मिल जाये तब तक तो मास्क के बगैर बाहर निकलना, विवाह समारोह जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होना लोगों को भूलना ही होगा। ”

उन्होंने कहा कि इस प्राकृतिक आपदा से निपटने में अभी कितने साल लगेंगे,कहा नहीं जा सकता क्योंकि बेहद तेजी से संख्या वृद्धि होने के कारण ही कोरोना वायरस का टीका बनने में समय लग रहा है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी सिर्फ अपनी जीवन शैली को फिलहाल बदल कर ही कोरोना को मात दी जा सकती है।

कोरोना के कहर से निकल चुके देशों की चर्चा करते हुए संगोष्ठी में सूक्ष्मजीव विज्ञानियों ने काफी बाद में कोरोना की चपेट में आये भारत जैसे देश के लोगों को सलाह दी कि वे सामाजिक दूरी बनाये रखने के लिये कोई कसर न छोड़ें वरना इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। न्य देशों की तरह शिक्षकों और छात्रों के लिये मास्‍क अनिवार्य करने के साथ ही एक तिहाई संख्या के आधार पर दो से तीन शिफ्टों में चलाये जाने की शर्त पर ही स्कूल खोलने की अनुमति दी जानी चाहिये।

संगोष्ठी में बताया गया कि दुनिया के अलग अलग देशों में कोरोना संक्रमितों के मल से भी इसके अंश मिले हैं जो संक्रमण चेन बना सकते हैं, जिसके मद्देनजर सीवेज को दशमलव पांच प्रतिशत क्लोरीन की रसायनिक प्रतिक्रिया से वायरस मुक्त किया जाना अत्यन्त जरूरी है। कोरोना के लिये रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने हेतु सात से आठ घंटे की नीं‍द, विटामिन सी युक्त भोजन और योग आदि की भी सिफारिश की गई।