राजस्थान में लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली करारी हार के बाद भाजपा उत्तर प्रदेश की इन दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव को हर हाल में जीतना चाहेगी। राजस्थान के बाद इन दोनों सीटों के उपचुनाव में भाजपा हारी तो 2019 के आम चुनाव में गलत संदेश जा सकता है।
योगी सरकार बनने के बाद राज्य में हुये नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का दावा है कि उसने अच्छा प्रदर्शन किया। 16 नगर निगमों में से 14 पर भाजपा उम्मीदवार जीते। विधानसभा की सिकन्दरा सीट पर भी उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार जीता।
ये चुनाव राजस्थान में हुये उपचुनाव के पहले हुये थे। राजस्थान में हुए उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद भाजपा को गोरखपुर और फूलपुर सीट बरकरार रखना जरुरी हो गया है। इन उपचुनाव को राजनीतिक प्रेक्षक योगी की अग्निपरीक्षा के रुप में देख रहे हैं।
वर्ष 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट पर लगातार कामयाब होते रहे। गत 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही तय हो गया था कि योगी लोकसभा सीट से इस्तीफा देंगे।
तमाम राजनीतिक कयासों के बीचएअब लाख टके का सवाल है कि गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से अगला सांसद कौन होगा। नौ बार सांसदी मंदिर में रहने की वजह से लोगों का सोचना है कि उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ अपने किसी प्रिय शिष्य को लोकसभा का उम्मीदवार बनवा सकते हैं ताकि मंदिर से ही लोकसभा की सदस्यता बरकरार रह जाए।
हालांकि, योगी का कहना है कि पार्टी का जो भी निर्णय होगा वह मानेंगे। पार्टी के एक नेता का कहना है कि गोरखपुर के उम्मीदवार चुनने में श्री योगी की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
दूसरी ओर, पार्टी में योगी को पसन्द नहीं करने वालों का कहना है कि भाजपा योगी को नियंत्रित रखने के लिए उनके किसी विरोधी को भी टिकट दे सकती है। यद्यपि मुख्यमंत्री के मिजाज से परिचित लोगों का दावा है कि पार्टी शायद ही ऐसा करे क्योंकि योगी अपने धुन के पक्के हैं और उन्हें नाराज कर उम्मीदवार का चयन शायद ही किया जाए।