भोपाल, मुख्यमंत्री पद से कमलनाथ के इस्तीफे के बाद भाजपा में सरकार बनाने के लिए चल रही सरगर्मी के बीच राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि प्रदेश के अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा उत्तरप्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड एवं अन्य राज्यों की तर्ज पर किसी अप्रत्याशित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाएगी या पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अथवा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज नेताओं में से किसी एक को कमान सौंपेगी।
भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी आलाकमान ही इसका फैसला लेगी और बाद में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगेगी।
मालूम हो कि कमलनाथ ने मध्यप्रदेश में सत्ता के लिए 18 दिन तक चले सियासी उठा-पटक के बाद मुख्यमंत्री पद से शुक्रवार को इस्तीफा दिया है। इसके बाद मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा सहित अन्य भाजपा नेताओं ने कहा कि जल्दी ही भाजपा प्रदेश में अपनी सरकार बनाएगी। लेकिन, सरकार गिरने के करीब छह घंटे बाद भी भाजपा नेतृत्व यह नहीं बता पाया है कि वह किसके नेतृत्व में सरकार चलाएगी। मुख्यमंत्री किसे बनाएगी, इसको लेकर पशोपेश में दिख रही है।
हालांकि, 13 साल तक लगातार मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहने का इतिहास बना चुके शिवराज सिंह चौहान इस पद के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। लेकिन क्या भाजपा आलाकमान एक बार फिर चौहान को मुख्यमंत्री बनने का मौका देंगे। यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।भाजपा सूत्रों ने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा आजकल लिए जा रहे फैसलों को देखते हुए कोई भी यह पूरे विश्वास से नहीं बता सकता कि फलां व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने का मौका है, क्योंकि भाजपा ऐसा निर्णय आजकल कांग्रेस की स्टाइल में ले रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में भाजपा में आश्चर्यजनक फैसले आते हैं। शीर्ष नेतृत्व (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) के आलवा कोई नहीं जानता कि मुख्यमंत्री किसे चुनना है। यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह को भी इसका पता नहीं होता कि किसे कमान सौंपी जाएगी।’’ सूत्रों ने बताया, ‘‘जब मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चयन हुआ तो उस वक्त भी कोई नहीं जानता था कि खजुराहो के सांसद एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के पूर्व महासचिव विष्णु दत्त शर्मा को मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया जाएगा। इस बार मुख्यमंत्री के लिए भी कोई आश्चर्य में डालने वाला नाम हो सकता है।’’
उन्होंने कहा कि चौहान के अलावा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थवरचंद गहलोत भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। गहलोत के करीबी सूत्र ने बताया, ‘‘गहलोत कभी कुछ नहीं मांगेगे, लेकिन जो दायित्व उन्हें सौंपा जायेगा उसे निभायेंगे। वह संघ के साथ-साथ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए भी अनुकूल हैं। वह संगठन के आदमी हैं और इससे पूर्व वह पार्टी महासचिव तथा दिल्ली और गुजरात में पार्टी प्रभारी के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसके साथ ही वह अनुसूचित जाति :एससी: वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से एससी समुदाय के लोगों में भाजपा के लिए सकारात्मक संदेश देगा, जिससे पार्टी को फायदा मिलेगा।’’
उन्होंने कहा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शर्मा ब्राह्मण समुदाय से है। पिछडा वर्ग से चौहान भी वर्ष 2003 से 2018 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये गये। इससे पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पदों पर राजपूत एवं ब्राह्मण रह चुके हैं। लेकिन एससी-एसटी वर्ग के लोगों को मध्यप्रदेश में बड़े पद नहीं मिले। इसलिए प्रदेश में एसटी-एससी वर्ग लम्बे समय से अपने समुदाय से मुख्यमत्री बनाने की मांग कर रहा है। गहलोत के करीबी सूत्र ने बताया कि गहलोत अनुभवी उम्मीदवार भी होगें, क्योंकि उन्होंने पार्टी में लंबे समय तक विभिन्न पदों पर काम किया है। इसके साथ ही केन्द्रीय मंत्री के तौर पर भी उनके पास अच्छा खासा अनुभव है।
इसी बीच, भाजपा सूत्रों ने बताया, ‘‘दिल्ली में आज देर शाम को भाजपा पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक होगी और इसके बाद तय किया जाएगा कि मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री किसे बनाना है। इस बैठक के बाद पर्यवेक्षक भोपाल में तय करेंगे कि कब भाजपा विधायक दल की बैठक होनी है। भाजपा विधायक दल कि बैठक में ही मुख्यमंत्री के नाम पर अंतिम मुहर लगेगी।’’ जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद और प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह ने कहा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मध्यप्रदेश में अगले मुख्यमंत्री का नाम तय करेगा।
सिंह ने कहा कि पार्टी संगठन जिसका भी नाम इस पद हेतु तय करेगा उसका निर्णय अंतिम होगा और वह प्रदेश का मुख्यमंत्री होगा। मध्यप्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। इनमें से दो विधायकों (एक कांग्रेस एवं एक भाजपा) के निधन हो जाने से वर्तमान में दो खाली हैं, जबकि कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो चुके हैं। इस प्रकार इस समय केवल 206 विधायक ही रह गये हैं। इनमें से भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है, जबकि कांग्रेस के 92 विधायक हैं। इनके अलावा चार निर्दलीय, दो बसपा एवं एक सपा विधायक है।
इस समय बहुमत का जादुई आंकड़ा 104 है, जो भाजपा के पास है।