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आखिर जातीय जनगणना कराने से क्यों बच रही है सरकार

लखनऊ, देश में इन दिनों पिछड़ा वर्गों की जातीय जनगणना कराये जाने की मांग तेज होती जा रही है, बिहार राज्य में नीतीश सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग की जाति के आधार पर जनगणना कराये जाने का फैसला लिए जाने के बाद यूपी में भी यह मुद्दा जोर पकड़ रहा है। हालांकि सत्ताधारी दल इस जातीय जनगणना का विरोध यह कहकर कर रहा है कि इससे समाज में वैमसस्यता पैदा होगी, लेकिन जिस तरह से उच्च न्यायालयों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों और पंचायत चुनाव में राजनीतिक आरक्षण देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों से लगातार यह पूँछ रहें हैं कि इन वर्गों का इनकी आबादी के मुताबिक प्रतिनिधित्व पूरा है या नहीं। राज्य सरकारों को यह जानने के लिए जरूरी है कि वह पिछड़ा वर्ग की जनसँख्या का पता लगाने के लिए इन वर्गों की जातिवार जनगणना कराएं, जबतक पिछड़ा वर्ग की आबादी की जानकारी के लिए जनगणना नहीं कराई जायेगी तबतक यह नहीं पता लगाया जा सकेगा कि इनकी आबादी के मुताबिक इन वर्गों को सरकारी सेवाओं और राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं।

वर्ष 1931 में आखिरी बार पिछड़ा वर्ग की जातिवार जनगणना हुई थी, इसके बाद से आजतक पिछड़े वर्ग की जातीय गणना नहीं हुई है, पिछड़ा वर्ग में किन-किन जातियों को सरकारी नौकरियों में कितना लाभ मिला है यह जानने के लिए केंद्र सरकार ने रोहिणी आयोग का गठन किया, अभीतक इसकी रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई है और इस आयोग का कार्यकाल लगातार बढाया जा रहा है, लेकिन बुनियादी बात यह है कि जबतक पिछड़ी जातियों में जातिवार आबादी का आंकड़ा उपलब्ध नहीं होगा तबतक ये भी नहीं पता लगाया जा सकेगा कि पिछड़े वर्ग में किन-किन जातियों को सरकारी सेवाओं, शिक्षा और सियासत में कितना लाभ मिला है। वैसे केंद्र सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ ही अल्पसंख्यकों की भी गणना करा रही है, ऐसी स्थिति में सरकार पिछड़ा वर्ग की जातिवार गणना क्यों नहीं कराना चाह रही है, इससे साफ़ है कि राज्य की भाजपा सरकार जो आरएसएस के एजेंडे पर चल रही है, वह पिछड़े वर्ग को उनकी आबादी के हिसाब से उन्हें राजनीति और सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ नहीं देना चाह रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में पंचायत और निकाय चुनाव में इलाहबाद हाई कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बिना ही चुनाव कराने का आदेश दिया क्योंकि सरकार के पास इस बात के आंकड़े नहीं हैं कि यूपी में पिछड़ा वर्ग की आबादी कितनी है और उसके मुताबिक उन्हें प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं। अदालत के इस फैसले के बाद पंचायत चुनावों में भी पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर तलवार लटकने लगी है, यदि विभिन्न दलों में शामिल पिछड़ा वर्ग के जनप्रतिनिधियों ने एकजुट होकर सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो राजनीतिक क्षेत्र के बाद शिक्षा और सरकारी सेवाओं में भी इनके अधिकारों को ख़त्म करने में सरकारें देर नहीं करेंगी। यदि जल्दी ही पिछड़ा वर्ग के लोगों की जातीय जनगणना नहीं हुई तो ऐसी स्थिति में यूपी के बाद देश के अन्य राज्यों में भी निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर आरक्षण ख़त्म हो जायेगा। ऐसे में अति पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग में बंटे इस समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वे एकजुट होकर अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिए आन्दोलन करें, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब देश के सभी राज्यों में निकाय चुनावों के साथ ही पंचायत चुनावों में भी पिछड़ा वर्ग के लिए प्रदत्त आरक्षण ख़त्म हो जायेगा। मनुवादी व्यवस्था की पोषक सरकार के आरक्षण विरोधी रवैये को देखते हुए वह दिन दूर नहीं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को ख़त्म कर दिया जाए, ऐसी स्थिति में विभिन्न दलों के अनुसूचित जाति और जनजाति के जनप्रतिनिधियों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे पिछड़ा वर्ग के साथ एकजुट होकर आन्दोलन में सहभागी बनें। विभिन्न पार्टियों में उच्च पदों पर विराजमान और भाजपा की नीतियों के ध्वजावाहक पिछड़ा वर्ग के नेताओं का भी यह नैतिक दायित्व बनता है कि वे संविधान की रक्षा और पिछड़ा वर्ग विरोधी मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करें।

सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि अपने संवैधानिक अधिकारों को हासिल करने के लिए पिछड़ा वर्ग के साथ ही दलित नेताओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने समाज के हित में संसद और विधानसभाओं में अपनी आवाज बुलंद करें। उनका कहना है कि केंद्र सरकार वर्ष 2021 की जनगणना में ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरह पिछड़ा वर्ग की भी जातिवार जनगणना कराये, यदि केंद्र सरकार पिछड़ा वर्गों की जातिवार जनगणना नहीं करा रही है तो राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है वह अपने स्तर से पिछड़ा वर्ग की जातिवार जनगणना कराए, ताकि सरकारें अदालतों को यह बता सकें कि पिछड़ा वर्ग की आबादी के लिहाज से उन्हें सरकारी नौकरियों, शिक्षा और राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है या नहीं। वैसे संस्था के अध्यक्ष ने अक्टूबर 2021 में केन्द्रीय गृह सचिव एवं पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सभी दलों के सांसदों को एक औचित्यपूर्ण व विस्तृत प्रत्यावेदन भेजते हुए 2021 की जनगणना के साथ-साथ पिछड़े वर्ग की जातिवार जनगणना कराये जाने के लिए मांग भी की है। ताकि देश में पिछड़ा वर्ग की जातिवार जनगणना कराये जाने के बाद राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी ट्रिपल-टी को सही तरीके से लागू करा सकें, क्योंकि जातीय जनगणना कराये बिना पिछड़ा वर्ग को न्याय देने के सारे प्रशन अनुत्तरित रह जायेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार,कमल जयंत