सोनभद्र, चीन में चल रहे एशियन खेल 2023 में सोनभद्र जिले के एक छोटे से गांव में गुमनाम जिंदगी जी रहे परिवार का सितारा रामबाबू और हमारे देश की मंजू रानी की जोड़ी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का शानदान प्रदर्शन करते हुए देश को 35किलोमीटर पैदल चाल में कांस्य पदक दिलाया । इस मेडल के साथ ही भारत ने पिछले एशियाड के पदकों की बराबरी भी कर ली।
सोनभद्र के बहुअरा गांव के भैरवागांधी निवासी रामबाबू के इस सफलता पर इलाके में खुशी की लहर दौड़ गयी । कभी गांव की पगडंडियों पर रामबाबू अभ्यास किया करते थे और आज रामबाबू ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लंबी छलांग लगाते हुए न सिर्फ जिले का बल्कि प्रदेश व देश का नाम रोशन किया है । एक छोटे से खपरैल के मकान में गुजरा कर रहे पिता छोटेलाल खेतिहर मजदूर के रूप में काम कर उनकी अकेडमी का खर्च उठाते रहे, तो माता मीना देवी ने गांव में आसपास के पशुपालकों से दूध इकठ्ठा कर खोवा बना कर मधुपुर मंडी में बेच कर बेटे का सपना साकार करने में दिन-रात एक कर दिया । खुद रामबाबू ने कभी मनरेगा में पिता के काम मे हाँथ बंटाया तो कुछ पैसों के लिये वेटर तक की नौकरी भी की लेकिन लक्ष्य से अडिग नहीं हुये ।
पिछले वर्ष गुजरात के अहमदाबाद में राष्ट्रीय खेलों की प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत कर रामबाबू चर्चा में आये । हाल ही में रामबाबू ने पिता द्वारा एक किलोमीटर दूर से पानी लाने की समस्या हल करने के लिये हैण्डपम्प लगाने की मांग की तो कई तरह के सवाल खड़े होने लगे कि जो देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया वह एक हैंडपंप के लिए मोहताज है । जिसके बाद जिला प्रशासन ने उनकी यह मांग पूरा कर दी है और दरवाजे पर हैंडपंप लग गया । उसी के बाद सेना ने रामबाबू के लिए हवलदार पद पर नियुक्ति कर दी । वेतन मिलने के साथ ही आर्थिक स्थिति भी घर चलाने योग्य आने लगी तो और मनोयोग से तैयारी में जुट गये ।
रामबाबू की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई उसके बाद नवोदय विद्यालय में चयन हो गया, जहां उन्होंने इंटर तक शिक्षा प्राप्त की है। घर मे दो बड़ी बहनों पूजा और किरन की शादी हो गयी है जबकि छोटी बहन सुमन प्रयागराज में इंजीनियरिंग में दाखिला इस वर्ष लिया है और बदले वक्त में छोटी बहन भी अपने सपने साकार कर रही हैं । एशियन खेलों में अपनी प्रतिभा के बल पर जिले के प्रथम अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने वाले रामबाबू युवाओं के प्रेरणास्रोत बन गये है और यह साबित कर दिया कि संसाधनों के कमी के बावजूद भी अगर पूरे मनोयोग से लक्ष्य के लिये संघर्ष किया जाय तो सफलता प्राप्त की जा सकती है ।