नई दिल्ली, सीआरपीएफ ने अपने एक महानिरीक्षक द्वारा दी गयी फर्जी मुठभेड़ मामले की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। सीआरपीएफ ने दलील दी कि अर्धसैन्य बलों को सूचना के अधिकार अधिनियम से जानकारी देने से छूट है। असम में सुरक्षा बलों के संयुक्त दस्ते द्वारा एक फर्जी मुठभेड़ में दो लोगों की हत्या से जुड़ी रिपोर्ट की प्रति मांगे जाने पर सीआरपीएफ ने अपने जवाब में आरटीआई अधिनियम की धारा 24 का हवाला दिया।
फर्जी मुठभेड़ में हत्या मानवाधिकारों का उल्लंघन है और कुछ संगठनों को आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी देने से मिली छूट के दायरे में नहीं आती। अधिनियम कहता है कि जब मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी सूचनायें मांगी जाती हैं तो केंद्रीय सूचना आयोग से मंजूरी मिलने के 45 दिन के अंदर इसे उपलब्ध कराना होगा। लेकिन सीआरपीएफ ने मामले को सीआईसी को संदर्भित करने के बजाय आवेदन को खारिज कर दिया।
गुजरात कैडर के 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी रजनीश राय ने सीआरपीएफ के सर्वोच्च अधिकारियों को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें क्रमवार तरीके से बताया गया था कि कैसे सेना, असम पुलिस और सीआरपीएफ की कोबरा इकाई तथा सशस्त्र सीमा बल के संयुक्त दस्ते ने चिरांग जिले के सिमलागुड़ी इलाके में 29-30 मार्च को एक मुठभेड़ दो लोगों को मार दिया जिन्हें उन्होंने प्रतिबंधित संगठन एनडीएफबी का हिस्सा बताया।
राय ने अपनी 13 पन्नों की रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा गया कि घटना के बारे में सूचना और बलों के संयुक्त दस्ते द्वारा दर्ज कराई गयी एफआईआर इस ऑपरेशन का एक काल्पनिक विवरण पेश करती है जिसमें हिरासत में लिये गये दो लोगों की पूर्व नियोजित हत्या को छिपाकर इसे पेशेवराना उपलब्धि से जुड़े बहादुरी भरे कृत्य के तौर पर पेश किया गया। गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट मिलने की पुष्टि की है और कहा कि इसका अध्ययन किया जायेगा और इसकी विषयवस्तु पर जल्द ही कार्रवाई की जायेगी।