अहमदाबाद, अहमदाबाद की एक विशेष सत्र अदालत ने 14 साल पुराने सनसनीखेज गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में दोषी ठहराए गए 24 लोगों की सजा का ऐलान टाल दिया। अब इस पर नौ जून को सजा सुनाई जाएगी। अदालत ने इस मामले में दलीलें पूरी नहीं होने के कारण सजा का ऐलान टाल दिया। गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी में 28 फरवरी, 2002 को दिनदहाड़े हथियारबंद भीड़ द्वारा आग लगा दिए जाने की घटना में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की मौत हो गई थी। सोसाइटी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे। अहमदाबाद की विशेष सत्र अदालत ने गुरुवार को इस मामले में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अतुल वैद्य सहित 24 लोगों को दोषी करार दिया था। अदालत ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नगर पार्षद विपिन पटेल सहित 36 आरोपियों को बरी कर दिया था। अदालत ने इस मामले में साजिश से इनकार किया था।
एसआईटी (विशेष जांच दल) की विशेष अदालत में दोषियों की सजा पर पीड़ितों के वकील, बचाव पक्ष के वकील और अभियोजन पक्ष के वकीलों के बीच दलीलों की शुरुआत सोमवार दोपहर हुई। पीड़ितों के वकील एस.एम. वोहरा ने दोषियों के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि लोगों की नृशंस हत्या की गई। इसे दुर्लभ से दुर्लभतम मामले के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले के पीड़ित परिवारों को इस पीड़ा से गुजरने के लिए हर्जाना दिया जाना चाहिए। अभियोजन पक्ष के वकील आर. सी. कोडेकर ने दलील दी कि यदि दोषियों को मृत्युदंड नहीं दिया जाता है तो उन्हें मृत्यु तक आजीवन कारावास दिया जाना चाहिए।
दलीलों के दौरान अदालत ने अभियोजन पक्ष से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि आखिर क्यों सजा की अवधि 14 साल से अधिक होनी चाहिए। वहीं, दोषियों के वकील अभय भारद्वाज ने कहा कि सजा भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे नृशंस हत्या नहीं कहा जा सकता, क्योंकि गुलबर्ग सोसाइटी पर हमले की शुरुआत पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी द्वारा गोली चलाने के बाद हुई। उन्होंने माना कि हाउसिंग सोसाइटी के बाहर तनावपूर्ण माहौल था, जहां 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस रेलगाड़ी में हुई आगजनी की घटना में 58 लोगों की मौत के विरोध में नाराज लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी। भारद्वाज ने कहा कि जाफरी ने ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में गोली चलानी शुरू कर दी, जिसके बाद भीड़ उग्र हो गई और उसने गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला शुरू कर दिया। उन्होंने जाफरी की ओर से चलाई गई गोली में 15 लोगों के घायल होने की बात कही। उन्होंने अदालत से इस तथ्य पर विचार करने के लिए कहा कि दोषियों ने अपनी जिंदगी में पहली बार अपराध किया और उनका कोई पूर्व का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। साथ ही उन्होंने अपनी जमानत अवधि के दौरान भी किसी तरह का अपराध नहीं किया। उन्होंने अदालत द्वारा इस मामले में साजिश के आरोपों को खारिज किए जाने को भी आधार बनाया।
अदालत ने 24 में से 11 लोगों को हत्या का दोषी ठहराया, जबकि 13 अन्य को कमतर अपराधों का दोषी पाया। अतुल वैद्य को धारा 436 के तहत दुकानों एवं घरों को आग लगाने के लिए कमतर अपराधों का दोषी ठहराया गया है। अदालत ने 36 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। बरी किए जाने वालों में भाजपा पार्षद विपिन पटेल के साथ-साथ पुलिस निरीक्षक के.जी. एरडा भी शामिल हैं। एरडा ने इस मामले की प्राथमिकी दर्ज की थी, पर बाद में उनका नाम अभियुक्तों में शामिल कर दिया गया।