नयी दिल्ली, जनवादी लेखक संघ ने प्रसिद्ध दलित चिन्तक एवं आलोचक डॉ धर्मवीर के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और इसे साहित्य की बड़ी क्षति बताया है। वह 67 वर्ष के थे।
डॉ0 धर्मवीर का कल रात निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार आज मेरठ में किया गया। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉण् धर्मवीर पिछले कुछ माह से अांत के कैंसर से पीड़ित थे। जलेस के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह द्वारा आज यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार डॉण् धर्मवीर का असामयिक निधन हिन्दी साहित्य और दलित आन्दोलन के लिए एक बड़ी क्षति है। वे कैंसर से पीड़ित थे। एक बार स्वास्थ्य-लाभ कर चुकने के बाद दुबारा कैंसर के हमले को उनका शरीर झेल नहीं पाया और कल रात उनका इंतकाल हो गया।
वह अपने विचारोत्तेजक लेखन और मौलिक दृष्टि के लिए जाने जाते थे। श्हिंदी की आत्माश् और श्कबीर के आलोचकश् जैसी उनकी किताबें लम्बे समय तक याद की जायेंगी। इनके अलावा भी उनकी कई पुस्तकें चर्चित रहीं. श्दलित चिन्तन का विकासरू अभिशप्त चिंतन से इतिहास चिंतन की ओरश्ए श्कबीररू खसम खुसी क्यों होयश्ए श्प्रेमचंदरू सामंत का मुंशीश्ए श्प्रेमचंद की नीली आंखेंश्ए श्मातृसत्ताए पितृसत्ता और जारसत्ता, कबीर और रामानंद, किम्वदंतियां, कबीर के कुछ और आलोचक, हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रक्षिप्त चिंतन,अशोक बनाम वाजपेयी,अशोक वाजपेयी, श्दूसरों की जूतियां, श्मेरी पत्नी और भेड़िये, ;आत्मकथात्मक कृति इत्यादि।
विज्ञप्ति में कहा गया कि हिन्दी के अनेक विचारकोंए आंदोलकारियों और शोधार्थियों को डॉ0 धर्मवीर से ही कबीर
को नए नज़रिए से देखने की प्रेरणा मिली। उनके कई विचार ख़ासे विवादास्पद भी रहेए जिन पर हिन्दी जगत तथा दलित आन्दोलन के भीतर भी तीखा विभाजन देखने को मिलता है। जारकर्म और जारसत्ता से सम्बंधित उनके विचार तथा उनका धर्मसम्बन्धी चिंतन इसी श्रेणी में हैं। सहमति.असहमति से परे इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि उनके लेखन को बहुत गंभीरता से लेने की ज़रूरत है और कहना चाहिए कि उनका समग्र मूल्यांकन होना अभी बाक़ी है।