भारतीय न्याय व्यवस्था – केवल सामान्य आदमी ही नही, रामलला भी 69 वर्षों से न्याय की आस में
February 9, 2018
अयोध्या , अगर आप यह सोंचतें हैं कि भारतीय न्यायपालिका की लचर व्यवस्था का शिकार केवल आम आदमी है, तो आप बिल्कुल गलत सोंच रखतें हैं। सामान्यजन को कौन कहे, यहां तो रामलला भी 69 वर्षों से न्याय मिलने की आस में हैं। लेकिन अभी तक उन्हे न्याय नही मिला है, तो सोंचिये एक आम आदमी को कब न्याय मिलता होगा ?
देश के संवेदनशील मुकदमों में शामिल यहां के रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद का मसला 22-23 दिसम्बर 1949 की रात से ही शुरु हो गया था। विवादित ढांचे के बीच वाले गुम्बद में रामलला की मूर्ति रख दी गयी थी। हिन्दुओं का कहना है कि रामलला प्रकट हुए थे, जबकि मुस्लिम मानते हैं कि मूर्ति जबरदस्ती रख दी गयी थी।
मूर्ति रखे जाने के बाद दोनों समुदायों में विवाद को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने ढांचे के मुख्य गेट पर ताला लगवा दिया था। वर्ष 1950 में दिगम्बर अखाडे के तत्कालीन महन्त रामचन्द्रपरमहंस ने फैजाबाद की जिला अदालत में याचिका दाखिल कर रामलला के दर्शन पूजन की अनुमति मांगी।
मुकदमा चलता रहा। इसी बीच 1961 में विवादित ढांचे में जबरन मूर्ति रखे जाने का आरोप लगाते हुए मुस्लिम पक्ष ने मुकदमा दायर कर दिया। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद है। मूर्ति जबरन रखी गयी हैं। उसे हटवाकर संपत्ति मुसलमानों को सौंपी जाये।
सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दायर इस मुकदमें के मुद्दई मोहम्मद हाशिम अंसारी बने। बोर्ड की ओर से मुकदमा दाखिल होते ही यह विवाद संपत्ति का मान लिया गया। रामलला विराजमान स्थल प्लाट संख्या 583 के मालिकाना हक का मुकदमा शुरु हो गया और आज तक इस पर भारतीय न्याय व्यवस्था फैसला नही दे पायी है।