नयी दिल्ली, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर से जुड़े प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं भूगर्भशास्त्री डा. राजीव निगम ने रामसेतु के काल को लेकर अमेरिकी वैज्ञानिकों के दावों पर असहमति जतायी है। सीएसआईआर के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान में सलाहकार एवं भूगर्भ विभाग के मुख्य वैज्ञानिक डाण्निगम ने कहा कि रामसेतु के काल के बारे में विदेशी वैज्ञानिकों ने जो दावा किया है उस पर विस्तृत शोध की जरूरत है इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि सेतु कितना पुराना है।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी वैज्ञानिक अपने निष्कर्षाें में यह दावा कर रहे हैं कि रामसेतु के पत्थर सात हजार साल पुराने हैं जबकि वहां मौजूद रेत चार हजार वर्ष पुरानी है। लेकिन यह तर्क संगत नहीं लगता क्योंकि सेतुबंध का निर्माण बिना रेत के नहीं हुआ होगा। यह संभव नहीं लगता कि पत्थर पहले के हों और रेत बाद की।
गौरतलब है कि अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने डिस्कवरी के एक विज्ञान चैनल पर दिखाये गये एक प्रोमो में यह बताया था कि रामसेतु के पत्थर सात हजार वर्ष पुराने हैं जबकि वहां बिछी रेत चार हजार वर्ष पुरानी है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह मानव निर्मित है और पत्थर कहीं और से लाये गये। डा. निगम ने भी इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि सेतु मानव निर्मित है। उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री इलाका छिछला था और ऐसे में वहां आसानी से पत्थरों से सेतुबंध बना लिया गया होगा लेकिन बाद में जल स्तर ऊपर चले जाने से यह पानी में समा गया होगा।
यह नहीं कहा जा सकता कि वहां पत्थर तैरते थे क्योंकि उन पत्थरों की कोई प्रामाणिक जांच नहीं हुई है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहा है कि रामसेतु बनाने में जिन चूना पत्थरों का इस्तेमाल किया गया वह उस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं थे उन्हें कहीं और से लाया गया था। डाण्निगम ने कहा कि जहां तक तैरने वाले पत्थरों की बात है ये मुख्य रूप से श्प्यूमिकश् पत्थर होते हैं लेकिन वहां के पत्थरों की जांच अभी तक नहीं हुई है।
जिसे रामसेतु बताया जाता है वह तमिलनाडु के रामेश्वरम के करीब स्थित द्वीप पम्बम और श्रीलंका के बीच है और इसकी लंबाई करीब 50 किलोमीटर है। डा. निगम ने कहा कि चूंकि रामायण काल भी 7000 वर्ष पूर्व बताया जाता है इसीलिये लोगों में यह धारणा प्रचलित है कि यह रामसेतु ही है। उन्होंने कहा कि रामसेतु के बारे में और शोध किये जाने के लिये भारतीय वैज्ञानिकों को सरकार से मदद दी जानी चाहिए।