राष्ट्रपति का देश के नाम संदेश: कमजोर वर्गो पर हमला करने वालों से सख्ती से निपटें
August 15, 2016
नई दिल्ली, न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र को मजबूती से आगे बढ़ाने पर जोर देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विद्ध कमजोर वर्गो पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता दिवस की 69वीं स्वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, 1947 में जब हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा तथापि सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया।
हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी समेत अनेक जोखिम सहे हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है। देश के कुछ हिस्सों में दलितों पर हुए हमलों की पष्ठभूमि में प्रणब मुखर्जी ने कहा, पिछले चार वर्षो में, मैंने कुछ अशांत, विटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विएद्ध कमजोर वर्गो पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज और शासन तंत्र की सामूहिक समझ ने यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना एकावट के आगे बढ़ती रहेगी। राष्ट्रपति ने वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए संविधान संशोधन बिल का पारित होना देश की लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने का विषय बताया और कहा कि लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक स्वतंत्रता के विशाल वक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित करना है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट किया गया है। जहां तक देश के अधिकारियों एवं संस्थानों की बात है इसमें मर्यादा की प्राचीन भारतीय परम्परा को स्थापित किया है। उन्होंने सरकार के सभी अंगों को सलाह दी कि वे अपने कर्तव्य के निर्वहन में मर्यादा का पालन करें और संविधान की मूल भावना को कायम रखें। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर कराये गये चुनावों से कहीं अधिक है। स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से निरंतर पोषित करना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कप्ल् किसी समूह और व्यक्ति द्वारा विभाजनकारी इरादे से पैदा किये गये व्यवधान तथा मूर्खतापूर्ण प्रयास से संवैधानिक विध्वंस और संस्थागत उपहास के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है, बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 50 साल पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर दिये सम्बोधन का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था, हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है। यह बेहतर सोच एवं कार्यों के लिए बढ़ते दबावों के समक्ष अपने व्यक्तित्व को बनाये रखने में सहायता करता है। लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं। एक प्रभावी लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई व्यक्ति या कोई समूह अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता।