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शेखावाटी में फीकी पड़ती होली की रंगत

झुंझुनूं, अनेक विविधताओं में समाये हुए राजस्थान का शेखावाटी क्षेत्र में पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने एवं वैश्विक महामारी कोरोना के चलते इस बार होली की रंगत फीकी नजर आ रही है।

पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने से शेखावाटी क्षेत्र में भी होली मात्र रस्म बनकर रह गई है। लोगों में न तो पहले जैसा जोश है, न उल्लास है और न ही उमंग हैं। महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले बधावा गीत तो सुनने को ही नहीं मिलते हैं। इन दिनों तो लोग सोशल मीडिया पर ही होली मनाते हैं और एक दूसरे को बधाई दे देते हैं। बदलते माहौल के बीच पिछले एक साल से चल रहे कोरोना ने भी लोगों को सीमित कर दिया और बड़े बड़े धार्मिक पर्व में केवल रस्म अदायगी ही बची हैं।

क्षेत्र में होली के नाम पर गाने बजाने वाली बड़ी-बड़ी मंडलिया तो बन गई लेकिन वे दूर दूर शहरों में जाकर होली के चंग धमाल कार्यक्रम की प्रस्तुतियां देते हैं। मगर उनके कार्यक्रमों में वह रस नहीं है जो पहले गांवों में लोग बिना ताम झाम के साथ एकत्रित होकर उत्साहपूर्वक उत्सव मनाते थे। सोशल मीडिया एवं शराब के बढ़ते प्रचलन ने भी होली के त्यौहार को सीमित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। शहरों की तरह गांव के लोग भी अब होली के त्यौहार को एक-दो दिन में ही निपटा देते हैं। होलिका दहन के लिए आजकल गांव में भी बड़कुले बनाने से महिलाएं परहेज करने लगी है। इस कारण सदियों से चली आ रही परम्पराएं समाप्त होने लगी हैं।

शेखावाटी क्षेत्र में होली अलग ही अंदाज में मनाई जाती है और बसंत पंचमी के दिन से ही शेखावाटी क्षेत्र में होली का हुदंगड़ प्रारंभ हो जाता था। जो गणगोर विसर्जन के साथ समाप्त होता था। क्षेत्र के गांवों की गलियों, शहरों के मोहल्लों में होली के दिनों में लोग चंग की थाप पर नाचते धमाल गाते, गांव के गुवाड़ में रात को लोग एकत्रित होकर होली का आनंद लेते थे। नाचते गाते झूमते और गांव में लोग विभिन्न प्रकार के स्वांग निकाल कर लोगों का मनोरंजन करते थे। महिलाएं सामूहिक रूप से रात में होली के गीत गाकर वातावरण में रस घोल देती थी। अब सब बदलते माहौल के भेंट चढ़ गया।

होली के दिनों में बजाये जाने वाले चंग के साथ धमाल एवं होली के गीत गाये जाते और साथ में झांझ, मंजीरे बजाते रहते तथा एक घेरा बनाकर लोग धमाल गाते थे। अब ये नजारे कम ही देखने को मिलते हैं। शेखावाटी में ढूंढ का चलन अभी भी व्याप्त है। परिवार में पुत्र के जन्म होने पर उसके ननिहाल पक्ष से कपड़े, मिठाई दिये जाते हैं, जिनकी पूजा कर बच्चे को कपड़े पहनाये जाते है एवं मिठाई मौहल्ले में बांटी जाती है। आजकल गांवों में बेटी के जन्म पर भी ढ़ूंढ़ पूजना प्रारम्भ हुआ है। जो कन्या भ्रूण हत्या रोकने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास साबित होगा।