नई दिल्ली, सुधर्मा अखबार दुनिया में एकमात्र संस्कृत भाषा का अखबार है। लेकिन इसकी पठनियता देश में ना के बराबर है और हालात यह है कि यह अखबार बंद होने के कगार पर है। 1970 से कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित हो रहा ये अखबार संस्कृत के महान विद्वान कलाले नांदुर वरदराज आयंगर ने शुरू किया था। एक पेज के इस अखबार को केरल, असम, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडू के पुस्तकालयों में जगह मिलती है। इसके अलावा पाठकों में ज्यादातर विद्यार्थी, शिक्षण संस्थानों और धार्मिक संस्थानों के लोग शामिल हैं। कुछ एक पाठक अमेरिका और जापान से भी हैं। अखबार ज्यादातर योग, वेद, संस्कृति और राजनीति की खबरें छापता है।
भारत की प्रतिष्ठा कही जाने वाली भाषा संस्कृत भारत में ही अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। इसका जीता जागता उदाहरण संस्कृत भाषा में प्रकाशित होने वाले सुधर्मा अखबार के रूप में सामने आया है। सुधर्मा का ई-पेपर भी है जिसे करीब डेढ़ लाख लोग पढ़ते हैं। अखबार का सर्कुलेशन कम होने की वजह से आयंगर के सुपुत्र और अखबार के मौजूदा संपादक वी. संपतकुमार नाखुश हैं और अखबार के बंद होने की संभावना से भी इन्कार नहीं कर रहे हैं। फिलहाल अखबार को जिंदा रखने के लिए इसके संपादक ने चंदा मांगा है। अखबार की तरफ से सरकार से भी मदद की गुहार लगाई जा चुकी है। सरकार की ओर से अभी तक कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।