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सफ़ेद गेंद की क्रिकेट में भारत को एक नई शैली की ज़रूरत है: आकाश चोपड़ा

नयी दिल्ली,  पूर्व भारतीय ओपनर और मौजूदा कमेंटेटर आकाश चोपड़ा का मानना है कि भारत को सफ़ेद गेंद की क्रिकेट में नयी शैली की जरुरत है।

आकाश ने क्रिकइंफो में कहा,’ सफ़ेद गेंद की क्रिकेट खेलने का हर टीम का अपना निश्चित तरीक़ा होता है। इंग्लैंड की टीम शुरुआत से ही आक्रामक रुख़ अपनाती है और उसी पर टिकी रहती है। ऑस्ट्रेलिया अपने अंदाज़ में विस्फोटक है जो अंतिम ओवरों में तेज़ी से रन बनाने पर विश्वास रखता है। न्यूज़ीलैंड स्थिरता के साथ जाना पसंद करती है और इसलिए अपने खिलाड़ियों को सारी भूमिकाएं निभाने के लिए समर्थन देती है।’

उन्होंने कहा,’खेलने की ये रणनीतियां आपके पास मौजूद बल्लेबाज़ों, गेंदबाज़ों, पिच और परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। यदि आपके पास एक शक्तिशाली गेंदबाज़ी क्रम है, तो आप विशाल स्कोर खड़ा करने को नहीं देखते हैं। अगर आपके पास बल्लेबाज़ी के विकल्प हैं तो आप विशेषज्ञ गेंदबाज़ों की जगह बल्लेबाज़ी क्रम में गहराई के साथ जाना पसंद करते हैं। इंग्लैंड ने इसी को अपनी सफ़ेद गेंद क्रिकेट का मूलमंत्र बना लिया है। इसके चलते उन्हें हर बार बल्ले से 15-20 रन अधिक बनाने पड़ते हैं। यह बल्लेबाज़ी कौशल के आधार पर गेंदबाज़ों का चुनाव करने की क़ीमत है, जो उन्हें चुकानी पड़ती है।’

आकाश ने कहा,’इसके विपरीत वेस्टइंडीज़, ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करने वाले खिलाड़ियों की टीम है। वह जीत दिलाने के लिए व्यक्तिगत प्रतिभा पर भरोसा करती है। यदि वे असफल होते हैं, तो परिणामस्वरूप आपको हाल ही में समाप्त हुए टी20 विश्व कप जैसा निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिलता है।’

उन्होंने कहा,’तो आख़िर सफ़ेद गेंद की क्रिकेट में भारत का टेम्प्लेट (अंदाज़) क्या है? चूंकि वह काफी सफल और नामचीन टीम हैं, यह मान लेना उचित है कि उसके पास एक सुविचारित योजना है। आइए इस योजना को समझने का प्रयत्न करते हैं और साथ ही यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि नौ वर्षों से यह टीम आईसीसी ट्रॉफ़ी क्यों नहीं जीत पाई है।’

आकाश ने कहा,’पिछले छह-सात वर्षों में भारत के पास रोहित शर्मा, शिखर धवन, विराट कोहली और लोकेश राहुल के रूप में विश्व का सर्वश्रेष्ठ शीर्ष क्रम रहा है। इनका हुनर ऐसा है कि इन चारों में से कोई भी तीन खिलाड़ी किसी भी समय विश्व की किसी भी टीम के शीर्ष क्रम में अपनी जगह बना सकते हैं। यह न केवल बड़े स्कोर की नींव रखते हैं, बल्कि टी20 और वनडे मैचों में मैच जिताकर जाते हैं। इस दौरान भारत की गेंदबाज़ी भी शानदार रही है। एकादश में विविधता वाले तीन या चार ऐसे गेंदबाज़ होते हैं, जो विकेट चटकाने में पारंगत है और साथ ही बल्ले के साथ योगदान देने में सक्षम है।’

आकाश ने अपनी नवीनतम क़िताब ‘द इनसाइडर: डिकोडिंग द क्राफ़्ट ऑफ़ क्रिकेट’में कहा,’हालांकि यह रणनीति कई मौक़ों पर सफल साबित हुई है, शीर्ष क्रम के बाद के बल्लेबाज़ों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जिस दिन टीम ने ख़ुद को 40 पर तीन विकेट की स्थिति में पाया है, वह सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचने के लिए संघर्ष करती नज़र आई हैं। संयोग से, आईसीसी टूर्नामेंटों में भारत के अधिकांश नॉकआउट मैच एक ही कहानी बयान करते हैं – शीर्ष तीन में से दो (अथवा तीनों ही) बल्लेबाज़ बड़ा स्कोर करने में विफल होते हैं और भारत या तो पर्याप्त स्कोर तक नहीं पहुंच पाता है या फिर लक्ष्य हासिल करने से चूक जाता है।’

उन्होंने कहा,’कोई इसे दुर्भाग्य समझकर आगे बढ़ सकता है। या फिर आप इससे सीख लेकर एक ऐसी टीम बना सकते हैं जो शीर्ष क्रम की सफलता पर निर्भर नहीं करती है। रोहित ने बतौर पूर्णकालिक कप्तान अपनी पहली प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इसी बात पर ज़ोर दिया।

आकाश ने कहा,’सफ़ेद गेंद वाली क्रिकेट में भारत के गेंदबाज़ी संसाधनों पर ग़ौर करें। जसप्रीत बुमराह विश्व स्तरीय थे और अब भी विपक्षी टीमों के लिए वही ख़तरा हैं जो वह पहले हुआ करते थे। हालांकि, लंबे समय तक बुमराह के भरोसेमंद सहयोगी भुवनेश्वर कुमार उतने कारगर नहीं साबित हुए हैं। युज़वेंद्र चहल की स्पिन को टीम प्रबंधन से वह विश्वास नहीं मिल रहा है। साथ ही दूसरे छोर पर एक आक्रामक स्पिनर की अनुपस्थिति में उन्हें मैदान पर उसी तरह की सफलता भी नहीं मिल पाई है।’

उन्होंने कहा,’संक्षेप में, विकेट चटकाने वाले तीन अथवा चार गेंदबाज़ों वाला आक्रमण अब एक या अच्छे दिनों पर दो गेंदबाज़ों पर सीमित रह गया है। अब आप कहेंगे कि भारतीय टीम तो अब भी बहुत विकेट चटकाती हैं, लेकिन हमें समझना होगा कि सीमित ओवरों के मैच में विकेट गिरना लाज़मी है। भारत द्वारा लिए गए अधिकांश विकेट जादुई गेंदों के कारण नहीं थे और ना ही इस वजह से थे कि भारतीय गेंदबाज़ों ने रन गति पर अंकुश लगाकर कोई दबाव बनाया था। इस टीम ने नई गेंद के साथ विकेट नहीं चटकाए हैं और यह मध्य ओवरों में उनपर भारी पड़ा है।

2019 विश्व कप के बाद से विश्व क्रिकेट की शीर्ष आठ वनडे टीमों के ख़िलाफ़ मध्य ओवरों में भारत की गेंदबाज़ी औसत 42.6 रही है, जो बेहद ख़राब है। मध्य ओवरों में अगर सिर्फ़ स्पिनरों पर ग़ौर करें तो भारत नीदरलैंड्स और ज़िम्बाब्वे के बाद नीचे से तीसरे स्थान पर है।

आकाश ने सवाल उठाया कि क्या खिलाड़ियों अथवा टीम के खेलने के अंदाज़ में बदलाव करने का समय आ गया है? मुझे लगता है कि भारतीय टीम ने बल्लेबाज़ी विभाग में एक शैली का निर्माण नहीं किया है। यह सुपरस्टार खिलाड़ियों की टीम है जिन्हें अपनी मर्ज़ी से खेलने की अनुमति दी गई। यह रणनीति शीर्ष क्रम के लिए कारगर साबित हो सकती है लेकिन मध्य क्रम के बल्लेबाज़ों को हमेशा परिस्थिति के अनुसार अपने खेल को ढालना पड़ता है।

बल्लेबाज़ी कौशल की गुणवत्ता को इस टीम द्वारा स्थापित बेड़ियों को तोड़ देना चाहिए था लेकिन भारतीय टीम के साथ ऐसा नहीं हुआ। बड़े व्यक्तिगत स्कोर ने न केवल निचले मध्य क्रम में दरारों पर पर्दा डाला, बल्कि उन्होंने निचले मध्य क्रम के बल्लेबाज़ों को फलने-फूलने के पर्याप्त अवसर भी नहीं दिए।

इंग्लैंड ने पूरी तरह से सीमित ओवर क्रिकेट में अपने खेलने के अंदाज़ को बदल दिया। भले ही जोस बटलर विश्व के सबसे विस्फोटक बल्लेबाज़ों में से एक हैं, वह इस टीम के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं है। वह इस बड़े समूह के एक स्तंभ है। एक बार जब कोई टीम किसी विशेष शैली के लिए अटूट रूप से प्रतिबद्ध होती है, तो मैच के महत्व से खेलने के अंदाज़ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हर मैच एक समान तरीक़े से खेला जाना है, फिर चाहे वह लीग मैच हो या नॉकआउट।

आकाश ने कहा,’एक दशक काफ़ी लंबा समय होता है और अब वक़्त आ गया है कि भारत समय के साथ अपने खेल को बदले। भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम को ऐसी शैली अपनानी चाहिए जो केवल सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ों पर निर्भर ना हो। इससे टीम बड़े मैचों के दबाव से मुक्त हो जाएगी।और जहां तक गेंदबाज़ी का सवाल है, भारत को विकेट चटकाने वाले गेंदबाज़ों में लंबे समय तक निवेश करना होगा। ऐसे गेंदबाज़ कई मौक़ों पर रन लुटाएंगे लेकिन उससे उनके स्थान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। बर्मिंघम में एक ख़राब मैच ने कुलदीप यादव को दो वर्षों के लिए टीम से बाहर कर दिया। ऐसे गेंदबाज़ों को आत्मविश्वास और संपूर्ण भरोसे की ज़रूरत होती है। कोशिश इंग्लैंड के फ़ॉर्मूले की नकल करने की नहीं है लेकिन अच्छा होगा अगर भारत उन्हीं सिद्धांतों पर चलते हुए अपनी अलग शैली बनाए।’