8 साल बाद मिर्चपुर दलित हत्याकांड का आया फैसला,जानिए कितने छूटे, कितने दोषी करार….
August 25, 2018
नयी दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के मिर्चपुर दलित हत्याकांड में आज प्रभावशाली जाट समुदाय के 12 लोगों को आजीवन कारावास की सजा देने के साथ ही 21 अन्य को मामले में अलग-अलग अवधि के कारावास की सजा सुनाई। हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में अप्रैल 2010 में 60 वर्षीय एक बुजुर्ग दलित एवं उनकी दिव्यांग बेटी को जिंदा जला दिया गया था।
अदालत ने कहा कि जाट समुदाय के लोगों ने वाल्मीकि समुदाय के सदस्यों के घरों को जानबूझकर निशाना बनाया। इस मामले में जाट समुदाय के सदस्यों का मकसद ‘‘वाल्मीकि समुदाय के लोगों को सबक सिखाना था। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ ने अपने 209 पृष्ठों के फैसले में कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी दबंग जातियों से संबद्ध लोगों द्वारा अनुसूचित जाति से संबंधित लोगों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में कमी के कोई संकेत नहीं दिखते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘19 एवं 21 अप्रैल 2010 के बीच मिर्चपुर में हुई घटनाओं ने भारतीय समाज में नदारद उन दो चीजों की यादें ताजा कर दी हैं जिनका उल्लेख डॉ. बी आर आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के समक्ष भारत के संविधान का मसौदा पेश करने के दौरान किया था। इनमें से एक है ‘समानता’ और दूसरा है ‘भाईचारा’। मिर्चपुर गांव के जाट एवं दलित समुदाय के बीच विवाद के बाद 21 अप्रैल, 2010 को तारा चंद के घर को आग लगा दी गयी थी। घटना में पिता-पुत्री की जल कर मौत हो गयी थी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस दौरान दलित समुदाय के कई अन्य सदस्य भी घायल हो गए और जाटों द्वारा उनकी संपत्तियों को भी ‘‘व्यापक नुकसान’’ पहुंचाया गया। दलितों की संपत्ति जलाए जाने पर उच्च न्यायालय ने कहा कि यह ज्वलनशील पदार्थ या गोबर के उपलों की वजह से अचानक तेजी से फैली आग का मामला नहीं था बल्कि यह ‘‘जानबूझकर, पूर्व नियोजित और सावधानीपूर्वक किया गया कृत्य था।’’ इसका वारदात का मकसद बाल्मिकी समुदाय के सदस्यों को ‘सबक’ सिखाना था।
इस मामले में सुनवाई अदालत ने 98 आरोपियों में से सिर्फ 15 को दोषी करार दिया था लेकिन उच्च न्यायालय ने 20 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को पलट दिया। निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए दो लोगों की अपील के लंबित रहने के दौरान मौत हो गई। जिन 20 लोगों की रिहाई के फैसले को पलटा गया उनमें से पांच को उच्च न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा दी गई है जबकि 15 को एक से दो साल की कैद की सजा सुनाई गई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि जाटों द्वारा बाल्मिकी समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर साजिश रची गई।
निचली अदालत ने 31 अक्तूबर, 2011 को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत गैरइरादतन हत्या के अपराध के लिये कुलविंदर, धरमबीर और रामफल को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। उच्च न्यायालय ने इन प्रावधानों को संशोधित करते हुए उन्हें आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध का दोषी ठहराया। उच्च न्यायालय ने जिन नौ और लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है वो करमबीर, प्रदीप, राजपाल, प्रदीप, जोगल, सत्यवान, पवन, संजय और धरमबीर हैं।
मिर्चपुर गांव हरियाणा के हिसार और जींद जिले की सीमा पर स्थित है। उच्च न्यायालय ने 33 दोषियों पर अलग-अलग राशि का जुर्माना भी लगाया और कहा कि हरियाणा सरकार दोषियों से जुर्माने के रूप में मिली धनराशि का इस्तेमाल पीड़ितों को आर्थिक राहत एवं पुनर्वास के प्रावधानों के लिये करे। उच्च न्यायालय ने मामले में निचली अदालत द्वारा 13 व्यक्तियों की दोषसिद्धी तथा सजा को चुनौती देने वाली उनकी अपील पर यह फैसला सुनाया। पीड़ितों एवं पुलिस ने भी उच्च न्यायालय में दोषियों की सजा बढ़ाने का अनुरोध करने के साथ ही अन्य आरोपियों को बरी किये जाने को चुनौती दी थी।