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भारत की विदेशी निवेश नीति में बदलाव से चीन परेशान, कर दी ये मांग ?

नयी दिल्ली,  चीन ने भारत की विदेशी निवेश नीति में दो दिन पहले किये गये बदलाव को भेदभाव पूर्ण और अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं निवेश के सिद्धांतों के खिलाफ बताया है तथा इन बदलावों को वापस लेने की मांग की है।

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यहां स्थित चीनी दूतावास की प्रवक्ता जी रोंग ने सोमवार को एक बयान में कहा कि 18 अप्रैल को भारत सरकार के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा विदेशी निवेश नीति में बदलाव करके चीन समेत उन सभी देशों की कंपनियों के निवेश को कठिन बना दिया गया है जिनकी जमीनी सीमा भारत से मिलती है। दिसंबर 2019 तक भारत में चीन का कुल निवेश आठ अरब डॉलर से अधिक था जो भारत की ज़मीनी सीमाओं से जुड़े अन्य देशों के कुछ निवेश से कहीं ज्यादा है।

सुश्री जी रोंग ने कहा कि भारतीय नीति में बदलाव का चीनी निवेशकों पर सीधा असर पड़ेगा। चीनी निवेश से भारत के उद्योगों जैसे मोबाइल फोन, घरेलू बिजली के उपकरण, आधारभूत ढांचा, ऑटोमोबाइल्स आदि का विकास हुआ और बड़ी संख्या में रोज़गार उत्पन्न हुए तथा इससे परस्पर लाभ एवं लाभकारी सहयोग को बढ़ावा मिला। चीनी उद्यमों ने भारत में कोविड 19 महामारी से निपटने के लिए सक्रियता से दान भी दिया।

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उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण आर्थिक मंदी का सामना करने वाले देशों को एकसाथ मिल कर एक अनुकूल निवेश का वातावरण बनाना चाहिए ताकि कंपनियों का उत्पादन एवं परिचालन तेज हो सके। भारत द्वारा निवेशकों के लिए लागू की गयीं नयी शर्तों से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के व्यापार एवं निवेश के लिए गैर भेदभाव कारी वातावरण के सिद्धांत का उल्लंघन होता है तथा यह उदारीकरण और व्यापार एवं निवेश के आम चलन के भी विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत का यह कदम जी-20 नेताओं और वाणिज्य मंत्रियों के बीच एक मुक्त, निष्पक्ष, गैरभेदभाव कारी, पारदर्शी, एवं स्थिर वातावरण की सहमति के अनुरूप भी नहीं है।

चीनी दूतावास की प्रवक्ता ने कहा, “ हम आशा करते हैं कि भारत अपने भेदभाव वाले फैसले पर पुनर्विचार करेगा, विभिन्न देशों के निवेश को समान दृष्टिकोण से देखेगा और एक मुक्त, निष्पक्ष एवं समानतापूर्ण व्यापारिक वातावरण कायम करेगा। ”

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