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लीची खाने से हो रही है बच्चों की मौत…..

नई दिल्ली,चमकी बुखार (दिमागी बुखार) का कहर बढ़ता जा रहा है. इस बीमारी को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) भी कहा जाता है।इस बीमारी की वजह से अब तक 54 बच्चों की मौत हो चुकी है। जबकि इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की संख्या 203 तक पहुंच गई है। मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन के मुताबिक इन मौतों की वजह हाइपोग्लाइसीमिया और अन्य अज्ञात बीमारी है। इस बीच सीएनएन की एक रिपोर्ट में इन मौतों की वजह को लीची भी बताया गया है।

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रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि लीची में पाया जाने वाले एक टॉक्सिन की वजह से यह मौतें हो रही हैं। बिहार शासन के स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से सीएनएन ने लिखा है कि एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम नाम की बीमारी का असर इंसानी दिमाग पर बुखार के रूप में पड़ता है। मुजफ्फपुर जिले के दो अस्पतालों में जनवरी 2019 से अब तक इस बीमारी के 179 से ज्यादा मामले आ चुके हैं। हालांकि मौत केवल पिछले दो सप्ताह में हुई हैं। वर्ष 2013 में इंसेफलाइटिस की वजह से उत्तर प्रदेश में भी करीब 351 मौतें हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीषण गर्मी और गर्म हवाओं की वजह से इस साल भी इस बीमारी की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ सकता है।

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बिहार का स्वास्थ्य महकमा राज्य में हो रही इन मौतों की वजह हाइपोग्लाइसीमिया नामक बीमारी को मानता है। इसे लो-ब्लड-शुगर भी कहते हैं। हालांकि इसके साथ ही मुजफ्फरपुर में बहुतायत में उगने वाली लीची भी कम जिम्मेदार नहीं है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार की वजह से मृत बच्चों के लीवर में एक टॉक्सिन पाया गया है, जो लीची में पाया जाता है। यह टॉक्सिन या जहरीला तत्व बच्चों के लीवर में एकत्रित होता रहता है और जैसे ही वातावरण में गर्मी बढ़ती है इसका असर दिखना शुरू हो जाता है।

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मुजफ्फरपुर की पहचान ही लीची है, और इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर भी यहीं दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस दिमागी बुखार के पीछे लीची भी एक कारण है और जैसे ही बारिश की वजह से तापमान में गिरावट आएगी, इस बीमारी का असर भी घटने लगेगा।2014 में एक शोध हुआ था, जिसे 2017 में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ मेडिकल जर्नल में भी प्रकाशित किया गया था, उसमें भी यह दावा किया गया था कि दिमागी बुखार की बड़ी वजहों में लीची भी शामिल है। इंसेफलाइटिस की वजह से दिमाग पर प्रभाव पड़ता है जिसे इंसिफैलोपैथी भी कहा जाता है और यह जानलेवा भी हो जाता है।

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अब तक की रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि इस बीमारी की वजह से मरने वाले बच्चे लगभग दिनभर लीची खाते थे। उनके माता-पिता का कहना है कि जिले के लगभग सभी गांवों में लीची के बागान हैं और बच्चे दिन में वहीं खेलते हैं। यहां तक कि अधिकांश बच्चे तो दिन में लीची की वजह से खाना भी नहीं खाते हैं। जिन बच्चों की मौत इस बीमारी की वजह से हुई है वो अधिकांशतः रात का खाना भी नहीं खा रहे थे, जिसकी वजह से उनके शरीर में हाइपोग्लाइसीमिया बढ़ रहा था।

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बच्चों के यूरीन सैंपल की जांच से पता चला है कि दो-तिहाई बीमार बच्चों के शरीर में वही टॉक्सिन था, जो लीची के बीज में पाया जाता है। यह जहरीला तत्व कम पकी या कच्ची लीची में सबसे ज्यादा होता है। एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की वजह से दिमाग में बुखार चढ़ जाता है जिसकी वजह से कई बार मरीज कोमा में भी चला जाता है। गर्मी, कुपोषण और आर्द्रता की वजह से यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है और अपना कुप्रभाव दिखाती है।

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