आंबेडकर और लोहिया के सपने का जिक्र कर, अखिलेश यादव ने बताया सपा-बसपा गठबंधन का भविष्य?
August 16, 2018
नई दिल्ली, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने स्वाधीनता दिवस पर अपने भाषण मे बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर और समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने की बात याद दिलाकर, दशकों बाद एक बड़े सामाजिकआंदोलन के शुरूआत का संदेश दिया है।
अखिलेश यादव ने स्वाधीनता दिवस पर अपने भाषण में कहा कि देश का भविष्य आर्थिक समानता, सामाजिक न्याय और एकता से ही मजबूत बनाया जा सकता है। यही सपना आंबेडकर और लोहिया ने भी देखा था। दोनों ने 1956 में एक दूसरे को खत लिखकर तय किया था कि वह मिलकर यह लड़ाई लड़ेंगे। मगर, अफसोस कि दिसंबर 1956 में बाबा साहब का देहांत हो गया, लेकिन आज हमें वह सपना पूरा करने का अवसर मिला है।
बहुजन समाज पार्टी से समाजवादी पार्टी के गठबंधन की ओर इशारा करते हुए उन्होने कहा कि डॉ. आंबेडकर और डॉ. राम मनोहर लोहिया ने न्याय और एकता के जरिए देश का भविष्य मजबूत बनाने की लड़ाई मिलकर लड़ने का फैसला किया था और आज वह सपना पूरा करने का मौका मिला है। दरअसल, अखिलेश यादव का इशारा डॉ. आंबेडकर और डॉ. राम मनोहर लोहिया की उस सोंच की ओर है जो महज चुनावी तालमेल कर सत्ता पाने से आगे की बात करती है।
लोहिया और आंबेडकर समकालीन थे एवं सामाजिक न्याय दोनों का एजेंडा था। इन दोनों चिंतकों को जिस प्रश्न ने सबसे ज्यादा उद्वेलित किया वह यह था कि घोर शोषण व दमन के बावजूद इस देश में सामाजिक क्रांति क्यों नहीं हुई? भारत में जाति क्यों और कैसे अस्तित्व में बनी रही? भारत में सत्ता की प्रकृति क्या थी और उसने जाति व्यवस्था को चिरस्थायी बनाने में क्या भूमिका अदा की?
डॉ. भीमराव आंबेडकर का कहना था कि अगर समाजवादी, समाजवाद के स्वप्न को साकार करना चाहते हैं तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि जाति का प्रश्न एक मूलभूत प्रश्न है। ‘‘जाति वह राक्षस है जो आपके सामने हरदम रहता है। जब तक आप इस राक्षस को मार नहीं देते तब तक न तो राजनैतिक सुधार हो सकता है और ना ही आर्थिक सुधार। इसीलिये उन्होने सामाजिक सुधार व सामाजिक न्याय को राजनैतिक सुधार और आर्थिक सुधार से अधिक महत्व दिया।
वहीं, समाजवादी होते हुए भी, लोहिया ने आंबेडकर के तर्क को और आगे ले जाते हुए समाजवादियों की भ्रांतियों और उनके तर्क में दोषों की पहचान की। डा0 लोहिया के अनुसार, जो लोग केवल राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की बात करते हैं और सामाजिक सुधारों के महत्व को नजरंदाज करते हैं, वे निहित स्वार्थों से प्रेरित हैं क्योंकि ‘‘राजनीतिक और आर्थिक क्रांति के बाद भी सामाजिक रूप से दबे, कुचले और पिछड़े लोगों के जीवन मे कोई अंतर नही आयेगा।”
आंबेडकर और लोहिया के विचार, आज और अधिक प्रासंगिक हो गयें हैं जब हम डिजिटल इंडिया की बात तो कर रहें हैं, लेकिन वहीं देश मे जाति के नाम पर रोहित वेमुला, ऊना कांड, सहारनपुर भीम आर्मी संघर्ष, गुजरात और हरियाणा की दलित उत्पीड़न जैसी घटनाओं मे निरंतर बढ़ोत्तरी जारी है। इतने घोर शोषण व दमन के बावजूद, आज स्थिति यह है कि बहुजनवादी और समाजवादियों की राजनीति केवल चुनावी गणित पर आधारित है। जबकि हकीकत यह है कि केवल राजनैतिक सत्ता हासिल कर, गरीबों , दलितों -पिछड़ों का शोषण करने वाली पूंजीवादी व्यवस्था से नही लड़ा जा सकता है। नाही सामाजिक न्याय के सपने को पूरा नही किया जा सकता है।
आंबेडकर और लोहिया के सपनों को पूरा करने के लिये जरूरी है कि केवल चुनावी गुणा-भाग की जगह गरिमा, सामाजिक न्याय और बंधुत्व के मूल्यों को महत्व दिया जाये। सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों के द्वारा सामाजिक सुधार की नीवं रखी जाये। इसीलिये आज आवश्यकता इस बात की है कि आंबेडकरवादी और लोहियावादी एकसाथ दिल से जुड़ें। जिसकी चर्चा अखिलेश यादव ने अपने भाषण मे की। डा. भीमराव आंबेडकर व डा. राम मनोहर लोहिया की समान विचारधारा का जिक्र कर अखिलेश यादव ने सपा-बसपा गठबंधन को सत्ता प्राप्त करने के चुनावी गठबंधन से भी आगे ले जाने के स्पष्ट संकेत दियें हैं।