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न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा के उद्गारो पर, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कड़ी प्रतिक्रिया

नयी दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन ने इंटरनेशनल ज्यूडीशियल कांफ्रेस में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में व्यक्त उद्गारों पर बुधवार को असहमति व्यक्त की।  उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन ने मीडिया में भेजे गये एक बयान में कहा कि शनिवार को इस सम्मेलन में मोदी के बारे में न्यायमूर्ति मिश्रा के बयान का उसने बहुत ही पीड़ा और चिंता के साथ संज्ञान लिया है।

एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे और इसके दूसरे सदस्यों के हस्ताक्षर वाले बयान में कहा गया है, ‘‘एससीबीए उपरोक्त बयान पर अपनी कड़ी असहमति व्यक्त करती है और इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करती है। एससीबीए का मानना है कि संविधान के अंतर्गत न्यायपालिका की स्वतंत्रता बुनियादी ढांचा है और इस स्वतंत्रता को अक्षरश: संरक्षित करना होगा।’’ विज्ञप्ति में कहा गया है कि एससीबीए का मानना है कि ऐसा कोई भी बयान ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करके’ परिलक्षित करता है और इसलिए वह न्यायाधीशों से अनुरोध करती है कि भविष्य में न तो ऐसे बयान दें और न ही उच्चतर पदाधिकारियों सहित कार्यपालिका के साथ किसी प्रकार की नजदीकी दिखायें।

एसोसिएशन ने कहा कि एससीबीए का यह मानना रहा है कि इस तरह की निकटता न्यायाधीशों के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर असर डाल सकती है और वाद के नतीजों को लेकर वादियों के मन में संदेह पैदा कर सकती है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने 22 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूरि भूरि प्रशंसा की थी और उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर का स्वप्नदर्शी बताया था। उन्होने मोदी को बहुमुखी प्रतिभा वाला बताया था जो वैश्विक स्तर का सोचते हैं और स्थानीय स्तर पर काम करते हैं।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने सम्मेलन उद्घाटन कार्यक्रम में धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हुये प्रधानमंत्री और केन्द्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को 1500 पुराने हो चुके कानूनों को खत्म करने के लिये बधाई भी दी थी। इस बीच, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी एक अलग बयान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा द्वारा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में इस्तेमाल किये गये शब्दों पर निराशा व्यक्त की है। एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह का आचरण न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के बारे में लोगों की अवधारणा कमजोर करता है।

एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि न्यायाधीशों का यह बुनियादी कर्तव्य है कि वे सरकार की कार्यपालिका शाखा से गरिमामय दूरी बनाकर रखें। बार एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष ललित भसीन ने कहा कि इस तरह का व्यवहार जनता के विश्वास को कम करता है क्योंकि शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे संविधान के सिद्धांतों को बरकरार रखेंगे तथा कानून के शासन को सर्वोपरि रखते हुये कार्यपालिका के खिलाफ फैसले करेंगे। भसीन ने कहा, ‘‘बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया की कार्य समिति का मत है कि इंटरनेशनल ज्यूडीशियल कान्फ्रेंस में धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते समय न्यायमूर्ति मिश्रा ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा में जो अतिरेकपूर्ण शब्द इस्तेमाल किये वे औपचारिक शिष्टाचार के नियमों से बाहर थे।’’