Breaking News

अपनों में ही बेगानी हुयी ‘कजरी’

 

मिर्जापुर, सावन में अपनी अनूठी सांस्कृतिक परम्पराओं के रूप में देश विदेश में मशहूर मिर्जापुर की कजरी अपने गृह नगर में ही पराई होती जा रही है।

लोगों की उपेक्षा का दंश झेल रही कजरी को अब जिला प्रशासन ने जिले के सांस्कृतिक विरासत की लिस्ट से बाहर कर दिया है। इस बार जिला प्रशासन ने कजरी उत्सव पर मौनी अमावस्या और पितृ विसर्जन को वरीयता देते हुए कजरी उत्सव को स्थानीय अवकाश की सूची से हटा दिया गया है। प्रशासन के इस निर्णय से सांस्कृतिक कर्मियों में गुस्सा है।

एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहरें को संरक्षित करने का ढिंढोरा पिट रही है। वहीं मिर्जापुर का जिला प्रशासन बर्षा गीत के रूप में प्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण देने के स्थान पर उसकी उपेक्षा कर रहा है।
लीला रामनगर की भारी, कजरी मिर्जापुर सरनाम। की कहावत से इस लोक परम्परा का महत्व स्वतः सिद्ध होता है।

कभी कजरी का उत्सव पूरे देश में जाना जाता रहा है। वर्षा के साथ पूरे जिले में कजरी के स्वर गुजांयमान हो उठते थे। महिलाओं को कजरी खेलने के लिए मायके बुलाने की परम्परा अति प्राचीन रही है। चौपालो पर ढुनमुनिया कजरी अनायास लोगों को आकर्षित कर लेती थी। झुले के पटेग पर कजरी के क्या कहने। पुरूष कज्जालो का कजरी अखाड़ा और दंगलो का अपना अलग आकर्षण होता था।

बुधवार को कजरी उत्सव पर अजब सन्नाटा पसरा हैं। न तो झूले पडे हैं। न ही नदी तालाबों पर महिलाओं का झुंड दिखा। जिला प्रशासन ने इस उत्सव पर छुट्टी बंद कर एक तरह से रही सही कसर पूरी कर दी। अवकाश लिस्ट से कजरी के बाहर किए जाने के निर्णय को तुगलकी फरमान बताने वालो की संख्या बहुत ज्यादा है।