लखनऊ, उत्तर प्रदेश के चुनावी गुणा-भाग में मुस्लिम मतदाताओं की खासी अहमियत है और आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल सियासी समीकरणों की सूरत बदलने की कूवत रखने वाले इस वोट बैंक को एक बार फिर अपने पाले में लाने की कोशिश में जुट गये हैं। आबादी के लिहाज से देश के इस सबसे बड़े सूबे में मुसलमानों की आबादी 19/26 प्रतिशत है और राज्य विधानसभा की कुल 403 में से 125 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं। मुस्लिम मतदाता आमतौर पर भाजपा को नापसंद करने वाले माने जाते हैं लेकिन मुसलमानों के वोट बंटने का सबसे ज्यादा फायदा भी भाजपा को ही होता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली पार्टियां एक-दूसरे पर बढ़त लेने के लिये मुस्लिम मतदाताओं पर काफी हद तक निर्भर करती हैं, जबकि भाजपा के पास अपना परम्परागत वोटबैंक है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की अभूतपूर्व जीत के लिये मुस्लिम मतदाताओं के उसके पक्ष में सामूहिक मतदान को मुख्य कारण माना गया था। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कई सार्वजनिक मंचों से इस बात को स्वीकार भी किया था। मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिये बसपा मुखिया मायावती सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही हैं। उन्होंने शनिवार को कहा था कि अगर मुस्लिम साथ दें तो उनकी पार्टी भाजपा को हरा सकती है। इस बयान के मायने बिल्कुल साफ हैं। वह पहले भी कह चुकी हैं कि भाजपा और सपा एक ही सिक्के के पहलू हैं और कांग्रेस राज्य में हारी हुई लड़ाई लड़ रही है, लिहाजा मुसलमान मतदाता सपा और कांग्रेस को वोट देकर उसे बेकार ना करें। मायावती द्वारा तीन तलाक और भोपाल में सिमी के आठ कार्यकर्ताओं की कथित मुठभेड़ में मौत जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बेधड़क बयान दिया जाना भी मुसलमानों को लुभाने की उनकी पुरजोर कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।