इलाहाबाद, देश भर में ट्रिपल तलाक का मुद्दा गरमाया हुआ है। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि लिंग के आधार पर भी मूल व मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है।
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कोर्ट ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो। कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है।
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वहीं फतवे पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीड़न के मुकदमे की सुनवाई करते हुए तीन तलाक और फतवे पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
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कोर्ट ने कहा कि कोई पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से उपर नहीं है। ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है। यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है। दहेज उत्पीड़न केस को रद करने से किया इंकार:- कोर्ट ने तीन तलाक से पीड़ित वाराणसी की सुमालिया द्वारा पति अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न केस को रद करने से भी इनकार कर दिया। यह आदेश जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने अकील जमील की याचिका को खारिज करते हुए दिया।
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याची अकील जमील का कहना था कि उसने पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है। इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीड़न का दर्ज मुकदना रद होना चाहिए। कोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आपराधिक केस बनता है। फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है। यदि इसे कोई लागू करता है तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है।.
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