जो हो चुका सो हो चुका, हर चीज बदलती है, अपनी हर आखिरी सांस के साथ, तुम कर सकते हो ताजा शुरुआत…। किसी भी काम की शुरुआत के लिए जरूरी नहीं कि कोई मुहूर्त ही हो। जब आपकी इच्छा हो, मन में जुनून हो तभी एक नई शुरुआत की जा सकती है। यदि पूर्व में असफलता भी मिली हो तो उससे घबराना कैसा। आगे तो बढ़ना ही है जिसके लिए पहला कदम भी बढ़ाना ही होगा। नई शुरुआत तभी संभव है जब बुरी यादों को भुलाकर नए दृष्टिकोण के साथ शुभ कदम बढ़ाएं। प्रयास करें, हारें, फिर प्रयास करें, यही तो जीवन है। ऐसा काम करें जिसे असंभव समझते हों। विफल हों, फिर प्रयास करें। केवल वे लोग ही नहीं गिरते, जो कभी चुनौतीपूर्ण काम नहीं करते। हार भी आपकी है, इसलिए अपनी हार का भी आनंद लें। हम सभी कभी न कभी असुरक्षित महसूस करते हैं। संबंध, करियर, सेहत…ऐसे कई पहलू हैं, जिनमें विफलता की चिंता होती है। इससे बचाव के लिए कुछ जरूरी बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है। इसलिए यदि इन चार बातों पर ध्यान दें तो जिंदगी आसान होगी।
1. दो नावों में न रहें सवार एक ही बार में दो अलग-अलग दिशाओं में चलना मुमकिन नहीं तो ऊर्जा व्यर्थ क्यों करें? सिर्फ थोड़ा-सा पाने के लिए अगर रोज इच्छा के खिलाफ काम करना पड़े तो बेहतर है वह करें जो करना चाहते हैं। लेकिन पहले यह जान लें कि करना क्या चाहते हैं। दुविधा में रहने और आगे कदम न बढ़ाने से विफलता ही मिलेगी, इसलिए दृढ़-इच्छा से आगे बढ़ें। एक नई शुरुआत के लिए कोई समय नहीं होता, वह तो कभी भी शुरू की जा सकती है।
2. समय है हां कहने का सही दिशा में कदम बढ़ाने के बाद डर की कोई वजह नहीं रहना चाहिए। जीवन को पूरे जज्बे के साथ जीने की चाह रखें, अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें। अतीत से सबक लेकर मौजूदा स्थिति पर नियंत्रण रखें। फैसलों पर अडिग रहें। नए अवसरों को स्वीकार करें तभी तो किसी काम की शुरुआत होगी।
3. नजरिया बदलें सोच बदले बिना नतीजे नहीं बदले जा सकते। सोच एक-सी रहेगी तो नतीजे भी एक जैसे ही मिलेंगे। इसलिए नए विचारों को दिल में जगह दें। दृष्टिकोण बदलने को तैयार रहें। हर चीज बदलती है, इसी का नाम जिंदगी है।
4. डर कैसा हार से जब हम वर्तमान से संतुष्ट नहीं होते तो अतीत अधिक खुशगवार लगता है। अतीत कितना भी अच्छा हो, उसे लौटा तो नहीं सकते। इसलिए सचाई स्वीकारें। हर चुनौती का सामना करें और एक नई शुरुआत में जुट जाएं। सफलता का स्वाद कभी-कभी कोई उदाहरण हमें वह सबक भी सिखा जाता है, जिसका हम लंबे समय से इंतजार कर रहे होते हैं। इस बड़ी सफलता का अध्याय दरअसल अनेक विफलताओं की बुनियाद पर लिखा गया। उम्र के 22वें वर्ष में बिजनेस में उन्हें नुकसान हुआ, 23वें वर्ष में राजनीति में कदम रखा, मगर हार गए, 24वें वर्ष में फिर व्यापार में नुकसान हुआ, 26वें वर्ष में उनकी मंगेतर का निधन हो गया, फिर खुद बीमार हो गए। एक बार फिर उन्होंने स्पीकर का चुनाव लड़ा। यह उम्र का 29वां पड़ाव था लेकिन यहां भी उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा। 31 वें वर्ष में फिर उन्होंने राजनीति की ओर रुख किया लेकिन फिर चुनाव हारे।